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समवाओ
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समवाय ३३ : सू०१
१०. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया शैक्षः रात्निकेन सार्द्ध बहिस्तात् । वियारभूमि निक्खंते समाणे विचारभूमि निष्क्रान्तः सन् पूर्वमेव । पुवामेव सोहतराए आयामेइ शैक्षतरः आचमति, पश्चाद् रात्निकःपच्छा राइणिए- आसायणा आशातना शैक्षस्य । सहस्स।
१०. रात्निक मुनि के साथ बाह्यविचार-भूमि (शौच-भूमि) जाने पर शैक्ष पहले आचमन (शौच) करता है और रानिक उसके पश्चात्, यह शैक्षकृत आशातना है।
११. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया शैक्षः रानिकेन सार्द्ध बहिस्तात् विहारभूमि वा वियारभूमि वा विहारभूमि वा विचारभूमि वा निक्खंते समाणे तत्थ पुत्वामेव निष्कान्तः सन् तत्र पूर्वमेव शैक्षतर: सेहतराए आलोएति, पच्छा आलोचयति, पश्चाद रात्निक:राइणिए-आसायणा सेहस्स। आशातना शैक्षस्य ।
११. रात्निक मुनि के साथ बाह्यविहार भूमि (स्वाध्याय-भूमि) और विचार-भूमि जाने पर शैक्ष पहले गमनागमन विषयक आलोचना करता है और रात्निक उसके पश्चात्, यह शैक्षकृत आशातना है।
१२. सेहे राइणियस्स रातो वा शैक्षः रात्निकस्य रात्रौ वा विकाले वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो व्याहरमाणस्य आर्य ! क: सुप्तः ? क: के सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागृतः ? तत्र शैक्षः जाग्रत् रात्निकस्य जागरमाणे राइणियस्स अपडिसु- अप्रतिश्रोता भवति-आशातना णेत्ता भवति-आसायणा सेहस्स। शैक्षस्य ।
१२. रात्री या विकाल में रात्निक मुनि द्वारा यह पूछे जाने पर-"आर्य ! कौन सो रहा है और कौन जाग रहा है ?" शैक्ष जागता हुआ भी उसके प्रश्न को सुना-अनसुना कर देता है, यह शैक्षकृत आशातना है।
१३. केइ राइणियस्स पुव्वं कश्चिद् रात्निकस्य पूर्वं संलपितुं स्यात्, संलवित्तए सिया, तं हे पुव्वत- तत् शैक्षः पूर्वतरकं आलपति, पश्चाद् रागं आलवेति, पच्छा राइणिए- रात्निकः-आशातना शैक्षस्य । आसायणा सेहस्स।
१३. रात्निक को किसी से कोई बात कहनी है, यह बात शैक्ष पहले ही उससे कह देता है, यह शैक्षकृत आशातना है।
१४. सेहे असणं वा पाणं वा शैक्षः अशनं वा पानं वा खाद्यं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता स्वाद्य वा प्रतिगृह्य तत् पूर्वमेव शैक्षतरतं पुत्वमेव सेहतरागस्स आलोएइ, कस्य आलोचयति, पश्चाद् पच्छा राइणियस्स-आसायणा रानिकस्य-आशातना शैक्षस्य।। सेहस्स।
१४. शैक्ष अशन, पान, खाद्य और स्वाध लाकर पहले शैक्षतर के सामने उसकी आलोचना (निवेदन) करता है, फिर रानिक मुनि के सामने, यह शैक्षकृत आशातना है।
१५. सेहे असणं वा पाणं वा शैक्षः अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता वा प्रतिगृह्य तत् पूर्वमेव शैक्षतरकस्य । तं पुत्वमेव सेहतरागस्स उवदंसेति, उपदर्शयति, पश्चाद् रानिकस्य-.. पच्छा राइणियस्स-आसायणा आशातना शक्षस्य । सेहस्स।
१५. शैक्ष अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य लाकर पहले शैक्षतर को दिखाता है, फिर रात्निक को, यह शैक्षकृत आशातना है।
१६. सेहे असणं वा पाणं वा शैक्षः अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता वा प्रतिगृह्य तत् पूर्वमेव शैक्षतरकं तं पुव्वमेव सेहतरागं उवणिमंतेइ, उपनिमंत्रयति, पश्चाद् रात्निकम्-- पच्छा राइणियं आसायणा आशातना शैक्षस्य । सेहस्स।
१६. शैक्ष अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य लाकर पहले शैक्षतर को निमंत्रित करता है, फिर रात्निक को, यह शैक्षकृत्त आशातना है।
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