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________________ समवाश्रो ६. सहकार (साहारण ) ५. स्वाध्यायवाद (सज्झायवाय) प्रस्तुत सूत्र के पाठ संस्करण में हमने 'सब्भाववयं' पाठ की सम्भावना और उसकी समीचीनता का विमर्श किया ।' उसका आधार दशाश्रुतस्कंध ( ६ / २ / २६ ) की वृत्ति में प्राप्त 'सद्भाववाद' शब्द रहा। किन्तु दशाश्रुतस्कंध की चूर्ण में 'सज्झायवाय' ( स्वाध्यायवाद) की व्याख्या मिलती है, जैसे मैं सूत्र का विशुद्ध उच्चारण करने वाला हूं' मैंने बहुत ग्रन्थों का पारायण किया है। इसलिए 'स्वाध्यायवाद' पाठ भी असमीचीन नहीं है । १६४ इसका मूल 'साहारण' शब्द है। इसके संस्कृत रूप तीन हो सकते हैं (१) संधारण - अच्छी प्रकार से धारण करना । (२) स्वाधारण - सहारा देना, उपकार करना । (३) संहरण - संकोचन । एक शब्द 'साहार' भी है, जिसका अर्थ है- सहकार या सहारा यहां 'साहारण' का अर्थ सहकार ही संगत लगता है । ७. श्लाघा ( सहाउं ) यहां श्लाघा के लिए 'सहा' शब्द प्रयुक्त है। यह मूलतः 'साहा' शब्द है । आदि के 'आकार' को ह्रस्व कर 'साहा' के स्थान पर 'सहा' का प्रयोग किया है। इस प्रकार के अन्य प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे साहा (शाखा) के स्थान पर 'सहा' का भी प्रयोग होता है । ८. अतृप्तभाव (ऽतिप्पयंतो ) यहां 'अतिप्पयंतों' का अकार 'ते' के साथ संधि होने के कारण लुप्त है । समवाय ३० : टिप्पण ६. स्थविर मंडितपुत्र ( थेरे णं मंडियपुत्ते ) वाशिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे । जब ये महावीर के पास छद्मस्थ तथा सोलह वर्ष तक केवली पर्याय में रहे। पूरी कर निर्वृत हुए। ये छठे गणधर थे । ' ये मगध जनपद के मौर्यं सन्निवेश के वासी थे। इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम वीरदेवी था । ये दीक्षित हुए तब इनका आयुष्य ६५ वर्ष का था । ये चौदह वर्ष तक इनका पूरा श्रामण्य काल तीस वर्ष का था और ये ६५ वर्ष की आयु १. अंगसुताणि भाग १, पृ० ८७२ । २. श्रावश्यकचूर्ण, पृ० ३३८, ३३६ । Jain Education International १०. रौद्र राक्षस (रोद्दे रक्खसे ) सूर्यप्रज्ञप्ति ( २० / ८४ ) में ये तीस नाम निम्न प्रकार से उपलब्ध होते हैं - रुद्र, श्रेयान्, मित्र, वायु, सुपीत, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान् ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान, त्वष्टा, भावितात्मा, वैश्रमण, वारुण, आनन्द, विजय, विश्वसेन, प्राजापत्य, उपशम, गन्धर्व, अग्निवेश्य, शतवृषभ, आतपवान्, अमम, ऋणवान्, भौम, वृषभ, सर्वार्थ और राक्षस । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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