SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थी। समवानो १६१ समवाय ३० : सू० ४-१२ बंमे सच्चे आणंदे विजए वीससेणे आनन्दः विजयः विश्वसेनः प्राजापत्यः विजय, विश्वसेन, प्राजापत्य, उपशम, वायावच्चे उवसमे ईसाणे तिठे उपशमः ईशानः त्वष्टा भावितात्मा ईशान, त्वष्टा, भावितात्मा, वैश्रमण, भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसमे वैश्रमणः वरुणः शतऋषभः गन्धर्वः वरुण, शतऋषभ, गन्धर्व, अग्निगंधवे अग्गिवेसायणे आतवं अग्निवश्यायनः आतप: आव्यधः तष्टप: वैश्यायन, आतप, आव्यध, तष्टप, आवधं तद्ववे भूमहे रिसभे भूमहः ऋषभः सर्वार्थ सिद्धः राक्षसः ।। भूमह, ऋषभ, सर्वार्थसिद्ध और सव्वदृसिद्धे रक्खसे। राक्षस । ४. अरे णं अरहा तीसं धणुइं उड्ढे अरः अर्हन् त्रिंशद् धनूंषि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन ४. अर्हन् अर की ऊंचाई तीस धनुष्य की उच्चत्तेणं होत्था। आसीत् । ५. सहस्सारस्स णं देविदस्स देवरण्णो सहस्रारस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रिशद ५. सहस्रारकल्प के देवेन्द्र देवराज के तीस तीसं सामाणियसाहस्सीओ सामानिकसाहस्रयः प्रज्ञप्ताः । हजार समानिक देव थे। पण्णत्ताओ। ६. पासे णं अरहा तोसं वासाइं पार्श्वः अर्हन् त्रिंशद् वर्षाणि अगारमध्ये ६. अर्हन् पार्श्व तीस वर्ष तक गृहवास में अगारमझे वसित्ता (मुंडे उषित्वा (मुण्डो भूत्वा ?) अगारात् रहकर (मुंड होकर), अगार अवस्था भवित्ता ?) अगाराओ अणगारियं अनगारितां प्रव्रजितः। से अनगार अवस्था में प्रवजित हुए थे। पव्वइए। ७. समणे भगवं महावीरे तीसं श्रमणः भगवान् महावीरः त्रिशद् ७. श्रमण भगवान् महावीर तीस वर्ष तक वासाडं अगारमझे वसित्ता वर्षाणि अगारमध्ये उषित्वा गृहवास में रहकर (मुंड होकर), (मुंडे भवित्ता ?) अगाराओ भूत्वा ?) अगारात् अनगारितां अगार अवस्था से अनगार अवस्था में अणगारियं पन्वइए। प्रवजितः। प्रवजित हुए थे। ८. रयणप्पभाए णं पुढवीए तीसं रत्नप्रभायां पृथिव्यां त्रिंशद् निरयावास- ८. रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। हैं। है. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति ६. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं एकेषां नैरयिकाणां त्रिंशत् की स्थिति तीस पल्योपम की है। पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। मण्डो १०. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं अधःसप्तम्यां पृथिव्यां अस्ति एकेषां १०. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कुछ नैरयिकों नेरइयाणं तीसं सागरोवमाइं नैरयिकाणां त्रिंशत् सागरोपमाणि की स्थिति तीस सागरोपम की है। ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइ- असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां ११. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति याणं तीसं पलिओवमाइं ठिई त्रिशत पल्योपमानि स्थितिः तीस पल्योपम की है। पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता। (सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं (सौधर्मेशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां (सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं देवानां त्रिशतपल्योपमानि की स्थिति तीस पल्योपम की है।) ठिई पण्णत्ता ?)। स्थितिः प्रज्ञप्ता)। १२ उवरिम - उवरिम- गेवेज्जयाणं उपरितन-उपरितन-वेयकाणां देवानां १२. तृतीय त्रिक की तृतीय श्रेणी के देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं जघन्येन त्रिंशत् सागरोपमाणि ग्रंवेयक देवों की जघन्य स्थिति तीस ठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। सागरोपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy