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________________ २६ एगूणतीसइमो समवायो : उनतीसवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. एगूणतीसइविहे पावसुयपसंगे णं एकोनविंशद्विधः पापश्रुतप्रसंगः १. पाप-श्रुत का प्रसंग (आसेवन)' पण्णते तं जहा-भोमे उप्पाए प्रज्ञप्तः, तद्यथा--भौमं उत्पातं स्वप्नं उनतीस प्रकार का है, जैसेसमिणे अंतलिक्खे अंगे सरे वंजणे अन्तरिक्षं अङ्गं स्वरं व्यञ्जनं लक्षणम् । १. भौम, २. उत्पात, ३. स्वप्न, लक्खणे। ४. अन्तरिक्ष, ५. अंग, ६. स्वर, भोमे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- भौमं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-सूत्रं ७. व्यंजन, ८ लक्षण-इन आठों के सुत्ते वित्ती वत्तिए, एवं एक्केक्कं वृत्तिः वात्तिकम्, एवं एकंक त्रिविधम् । सूत्र, वृत्ति और वार्तिक-ये तीन-तीन तिविहं। प्रकार होते हैं । २५. विकथानुयोग, विकहाणुजोगे विज्जाणुजोगे विकथानुयोगः विद्यानुयोग: मंत्रानुयोगः २६. विद्यानुयोग, २७. मंत्रानुयोग, मंताणुजोगे जोगाणुजोगे अण्ण- योगानुयोगः अन्यतीथिकप्रवृत्तानुयोगः । २८. योगानुयोग, २६. अन्यतीथिक प्रवृत्तानुयोग। तिथियपवत्ताणुजोगे। २. आसाढे णं मासे एकूणतोसराहंदि- आषाढ़ो मास: एकोनत्रिंशद् रात्रिन्दि- २. आषाढ़ मास दिन-रात के परिमाण से आई राइंदियग्गेणं पण्णते। वानि रात्रिन्दिवाग्रेण प्रज्ञप्तः । उनतीस दिन-रात का होता है।' ३. भद्दवए णं मासे एकगतीसराइंदि- भाद्रपदो मास: एकोनत्रिंशद् रात्रिन्- ३. भाद्रपद मास दिन-रात के परिमाण आइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। दिवानि रात्रिन्दिवाग्रेण प्रज्ञप्तः। से उनतीस दिन-रात का होता है। ४. कत्तिए णं मासे एकणतोसराइंदि- कात्तिको मासः एकोनत्रिंशद् रात्रिन्- ४. कार्तिक मास दिन-रात के परिमाण आई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। दिवानि रात्रिन्दिवाग्रेण प्रज्ञप्तः। से उनतीस दिन-रात का होता है। ५. पोसे णं मासे एकूणतोसराइंदि- पौषो मासः एकोनत्रिंशद् रात्रिन्दिवानि ५. पौष मास दिन-रात के परिमाण से आइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। रात्रिन्दिवाग्रेण प्रज्ञप्तः। उनतीस दिन-रात का होता है। ६. फग्गुणे णं मासे एकूणतोसराइं- फाल्गुनो मासः एकोनत्रिंशद् ६. फाल्गुन मास दिन-रात के परिमाण से दिआइं राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। रात्रिनदिवानि रात्रिन्दिवाण प्रज्ञप्तः । उनतीस दिन-रात का होता है। ७. बइसाहेणं मासे एकणतीसराइंदि- वैशाखो मासः एकोनत्रिंशद् आई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। रात्रिनदिवानि रात्रिन्दिवाग्रेण प्रज्ञप्तः । ७. वैशाख मास दिन-रात के परिमाण से उनतीस दिन-रात का होता है। ८. चंददिणे णं एगूणतोसं मुहुत्ते सातिरेगे मुहत्तग्गेणं पण्णत्ते। चन्द्रदिनं एकोनत्रिंशद्न्मुहूर्त सातिरेकं । ८. चन्द्रमास का दिन' (प्रतिपदा आदि मुहूर्ताग्रेण प्रज्ञप्तम् । तिथि) मुहूर्त परिमाण की दृष्टि से उनतीस मुहूर्त से कुछ अधिक का होता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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