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________________ समवाय २५, सू० २-५ समवायो १३७ १४. साहम्मियउग्गहं अणुण्णविय सार्मिकावग्रहं अनुज्ञाप्य परिभोजनम् परिभुंजणता अनुज्ञाप्य १५. साधारणभत्तपाणं अणण्ण- साधारणभक्तपानं विय परिभुंजणता। परिभोजनम् । १४. सार्मिक अवग्रह अनुज्ञाप्य परिभोग-सार्मिकों द्वारा याचित अवग्रह का उनकी अनुज्ञा लेकर उपभोग करना। १५. साधारण भक्त-पान अनुज्ञाप्य परिभोग-साधारण (सामान्य) भक्तपान का आचार्य आदि को अनुज्ञापित कर परिभोग करना। चतुर्थ महाव्रत १६. इत्थी - पसु - पंडग - संसत्त- स्त्री-पशु-पण्डक-संसक्त-शयनासनवर्जनम् सयणासणवज्जणया १७. इत्थो-कहविवज्जणया स्त्रीकथाविवर्जनम १८. इत्थोए इंदियाण आलोयण- स्त्रियः इन्द्रियाणां आलोकनवर्जनम् वज्जणया १६. पुव्वरय - पुत्वकोलिआणं पूर्वरत-पूर्वक्रीडितानां अननुस्मरणम् अणणुसरणया २०. पणोताहारविवज्जगया। प्रणीताहारविवर्जनम् । १६. स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का वर्जन करना। १७. स्त्री-कथा का वर्जन करना । १८. स्त्रियों के इन्द्रियों के अवलोकन का वर्जन करना। १६. पूर्वभुक्त तथा पूर्वक्रीडित कामभोगों की स्मृति का वर्जन करना। २०. प्रणीत आहार का वर्जन करना । पंचम महाव्रत २१. सोइंदियरागोवरई २२. चक्खिदियरागोवरई २३. धाणिदियरागोवरई २४. जिभिदियरागोवरई २५. फासिदियरागोवरई। श्रोत्रेन्द्रियरागोपरतिः चक्षुरिन्द्रियरागोपरतिः घ्राणेन्द्रियरागोपरतिः जिह्वन्द्रियरागोपरतिः स्पर्शन्द्रियरागोपरतिः। २१. श्रोत्रेन्द्रिय राग की उपरति । २२. चक्षुइन्द्रिय राग की उपरति । २३. घ्राणेन्द्रिय राग की उपरति । २४. रसनेन्द्रिय राग की उपरति । २५. स्पर्शनेन्द्रिय राग की उपरति । २. अर्हत् मल्ली पचीस धनुष्य ऊंचे थे। २. मल्ली णं अरहा पणवीसं धणुइं मल्ली अर्हन् पञ्चविंशति धनंषि उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। ऊध्वमुच्चत्वेन बभूव । ३. सव्वेवि णं दोहवेयड्पव्वया सर्वेऽपि दोघंवैताठ्यपर्वताः: पञ्च- पणवीसं-पणवीसं जोयणाणि उड़ विशति-पञ्चविंशति योजनानि ऊर्ध्व- उच्चत्तेणं, पणवीसं-पणवीसं गाउ- मुच्चत्वेन, पञ्चविंशति-पञ्चविंशति याणि उव्वेहेणं पण्णत्ता। गव्यूतानि उद्वेधेन प्रज्ञप्ताः । ३. सभी दीर्घ-चैताढ्य पर्वतों की ऊंचाई पचीस-पचीस योजन की है और उनकी गहराई पचीस-पचीस गाऊ की ४. दोच्चाए णं पुढवीए पणवीसं द्वितीयायां पृथिव्यां पञ्चविंशतिः ४. दूसरी पृथ्वी में पचीस लाख नरका णिरयावाससयसहस्सा पण्णता। निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । वास हैं। ५. आयारस्स णं भगवओ आचारस्य भगवत: सचूलिकाकस्य सचलियायस्स पणवीसं अज्झयणा पञ्चविंशतिः अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि । पण्णत्ता। ५. चूलिका सहित आचारांग' के पचीस अध्ययन हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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