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________________ मूल संस्कृत छाया तित्थगराणं पूर्वपश्चिमयोस्तीर्थकरयोः पञ्चयामस्य प्रज्ञप्ताः, १. पुरिमपच्छिमताणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पञ्चविंशतिः भावना: पण्णत्ताओ, तं जहा तद्यथा १. इरियासमिई २. मणगुत्ती ३. वयगुत्ती ४. आलोय - भायण - भोयणं २५ परवीसइमो समवा: पचीसवां समवाय ५. आदाण - भंड-मत्त - निक्खेवणासमई । ६. अणुवीति भासणया ७. कोहविवे ८. लोभविवेगे ६. भयविवेगे १०. हास विवेगे Jain Education International ११. उग्गह- अणुण्णवणता १२. उग्गह-सोमजाणणता १३. सयमेव उग्गह अणगेण्हणता ईर्यासमितिः मनोगुप्तिः वचोगुप्तिः आलोक-भाजन-भोजनम् आदान- भाण्डाऽमत्र - निक्षेपणा समितिः । अनुवीचि - भाषणम् क्रोधविवेकः लोभविवेक: भयविवेकः हासविवेकः । अवग्रह-अनुज्ञापनम् अवग्रह-सीमाज्ञानम् स्वयमेव अवग्रह- अनुग्रहणम् For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद १. प्रथम और अन्तिम तीर्थंङ्कर के शासन में पंचयाम ( पांच महाव्रतों ) की पचीस भावनाओं' का प्रज्ञापन किया गया है, जैसे प्रथम महाव्रत १. ईर्यासमिति २. मनोगुप्ति ३. वचनगुप्ति ४. आलोक-भाजन - भोजन- चौड़े मुंह वाले पात्र में भोजन । ५. आदान भांडामत्रनिक्षेपणा समिति । द्वितीय महाव्रत ६. अनुवीचिभाषणता – विधिपूर्वक बोलना ७. क्रोध विवेक क्रोध का त्याग ८. लोभ विवेक - लोभ का त्याग ६. भय विवेक - भय का त्याग १०. हास्य विवेक -- हास्य का त्याग तृतीय महाव्रत ११. अवग्रहानुज्ञापना' - अवग्रह के लिए गृहस्वामी की अनुज्ञा लेना १२. अवग्रहसीमाज्ञान - गृहस्वामी द्वारा अनुज्ञात अवग्रह की सीमा को जानना १३. स्वयमेव अवग्रह अनुग्रहणता --- अनुज्ञात अवग्रह को स्वयं स्वीकार करना — उसमें रहना www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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