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________________ समवाश्र ६. मिच्छादिद्विविलदिए णं मिय्यादृष्टिविकलेन्द्रियः अपर्याप्तकः अपज्जत्तए संकि लिट्ठपरिणामे संक्लिष्टपरिणामः नाम्नः कर्मणः उत्तरप्रकृतीर्निबध्नाति, नामस्स कम्मस्स पणवीसं उत्तरपयडीओ णिबंधति, तं पञ्चविंशति तद्यथा जहा - तिरियगतिनामं तिर्यग्गतिनाम विकलेन्द्रियजातिनाम संस्थाननाम विगलिदिय जातिनामं ओरालियसरीरनामं ओदारिकशरीरनाम तेजस्कशरीरनाम तेअगसरीरनामं कम्मगसरीरनामं कर्मकशरीरनाम हुंडठाणनामं ओरालियस रंगो- औदारिकशरीराङ्गोपाङ्गनाम सेवावंगनामं सेवट्टसंघयणनामं संहनननाम वर्णनाम गन्धनाम रसनाम वण्णनामं गंधनामं रसनामं स्पर्शनाम तिर्यगानुपूर्वीनाम अगुरुकलघुफासनामं तिरियाणुपुव्विनामं कनाम उपघातनाम त्रसनाम बादरनाम अगरु हुना उवघायनामं अपर्याप्तकनाम प्रत्येकशरीरनाम तसनामं बादरनामं अपज्जत्तयअस्थिरनाम अशुभनाम दुर्भगनाम नाम पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं अनादेयनाम अयशः कीर्त्तिनाम असुभनामं दुभगनामं अणादेज्ज- निर्माणनाम | अजसोकित्तिनामं नामं निम्माणनामं । ७. गंगासिंधूओ णं महानदीओ पणवीस गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ घमुह - पवित्तिणं मुत्तावलिहार - संठिएणं पवाणं पवति । ८. रतारत्तवतीओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ मकर मुह- पवित्तिणं मुत्तावलि - हार-संठिएणं पवातेणं पवति । ६. लोगबदुसारस्स णं पुव्वस्स पणवोसं वत्थू पण्णत्ता । १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पणवीसं पलिओमाई ठिई पण्णत्ता । ११. आहेस तमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । Jain Education International १३८ गङ्गासिन्ध्वो महानद्यौ पञ्चविंशति गव्यूतानि पृथुत्वेन द्विघातः घटमुखप्रवृत्तेन मुक्तावलिहार-संस्थितेन प्रपातेन प्रपततः । रक्तारक्तवत्यौ महानद्यौ पञ्चविंशति गव्यूतानि पृथुत्वेन द्विधात: मकरमुखप्रवृत्तेन मुक्तावलिहार-संस्थितेन प्रपातेन प्रपततः । लोकबिन्दुसारस्य पूर्वस्य पञ्चविंशतिवस्तूनि प्रज्ञप्तानि । अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति एकेषां नरयिकाणां पञ्चविंशति पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता । अवः सप्तम्यां पृथिव्यां अस्ति एकेषां नेरयिकाणां पञ्चविंशति सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता । For Private & Personal Use Only समवाय २५: सू० ६-११ ६. संक्लिष्ट परिणाम वाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय जीव नाम-कर्म की पचीस उत्तर प्रकृतियों का बन्ध करते हैं, जैसे तिर्यग्गतिनाम, विकलेन्द्रिय जातिनाम, औदारिकशरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम हुडसंस्थाननाम, औदारिकशरीर अंगोपांगनाम, सेवार्त संहनननाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, तिर्यग्आनुपूर्वीनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, त्रसनाम, बादरनाम, अपर्याप्त नाम, प्रत्येकशरीरनाम, अस्थिरनाम, अशुभनाम, दुभंगनाम, अनादेवनाम, अयशःकीर्तिनाम और निर्माणनाम | ७. गंगा और सिन्धु – दोनों महानदियों का मुक्तावली हार की आकृति वाला पचीस कोश का विस्तृत प्रपात घटमुख से प्रवृत्त होकर दोनों दिशाओं से ( पूर्व से गंगा का और पश्चिम से सिन्धू का ) नीचे गिरता है । ८. रक्ता और रक्तवती — दोनों महानदियों का मुक्तावली हार की आकृति वाला पचीस कोश का विस्तृत प्रपात मकरमुख से प्रवृत्त होकर दोनों दिशाओं से ( पूर्व से रक्ता का और पश्चिम से रक्तवती का ) नीचे गिरता है । ६. लोकबिन्दुसार पूर्व के वस्तु पचीस हैं । १०. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति पचीस पत्योपम की है । ११. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति पचीस पत्योपम की है। www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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