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________________ २४ चउव्वीसइमो समवानो : चौबीसवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. देवाधिदेव चौबीस हैं, जैसे १. चउव्वीसं देवाहिदेवा पण्णता, चतुर्विंशतिर्देवाधिदेवाः प्रज्ञप्ताः , तं जहा तद्यथाउसमे अजिते संभवे अभिणंदणे ऋषभः अजितः सम्भवः अभिनन्दनः सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुमतिः पद्मप्रभः सुपार्श्व: चन्द्रप्रभः सुविही सोतले सेज्जसे वासुपुज्जे सुविधिः शीतलः श्रेयांस: वासुपूज्यः विमले अणंते धम्मे संती कुथु विमलः अनन्तः धर्मः शान्तिः कुन्थुः अरः अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमो मल्ली मुनिसुव्रतः नमिः अरिष्टनेमिः अरिट्ठणेमी पासे वद्धमाणे। पार्श्वः वर्द्धमानः । १. ऋषभ, २. अजित, ३. संभव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ६. सुविधि, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर, १६. मल्ली, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. अरिष्टनेमि २३. पार्श्व और २४. वर्द्धमान । २. चुल्लहिमवंतसिहरीणं वासहर- क्षल्लहिमवच्छिखरिणोवर्षधरपर्वतयो - २. क्षुल्ल हिमवान् और शिखरी-इन दो पव्वयाणं जीवाओ चउव्वीसं- र्जीवे चतुर्विशति-चतुर्विशति वर्षधर पर्वतों में से प्रत्येक की जीवा चउव्वीसं जोयणसहस्साई योजनसहस्राणि नवद्वात्रिंशद योजनशतं णवबत्तोसे जोयणसए एगं च एक च अष्टत्रिशद भागं योजनस्य ___२४६३२ -- योजन से कुछ अधिक अत्तीसई भागं जोयणस्स किञ्चिद्विशेषाधिके आयामेन प्रज्ञप्ते । लम्बी है। किचिविसेसाहिआओ आयामेणं पण्णत्ताओ। ३. चउवीसं देवटाणा सईदया चतुर्विशतिः देवस्थानानि सेन्द्राणि ३. देवताओं के चौबीस स्थान इन्द्र सहित पण्णता, सेसा अहमिदा-अनिदा प्रज्ञप्तानि, शेषाणि अहमिन्द्राणि- हैं और शेष स्थान 'अहमिन्द्र' अर्थात् अपुरोहिआ। अनिन्द्राणि अपुरोहितानि। इन्द्र और पुरोहित रहित हैं। ४. उत्तरायणगते णं सूरिए उत्तरायणगतः सूर्यः चतुर्विंशत्यङ गुलिका ४. उत्तरायण में रहा हुआ सूर्य एक पहर चउवीसंगलियं पोरिसियछायं पौरुषीयच्छायां निर्वर्त्य निवर्तते । की चौबीस अंगुल प्रमाण छाया निष्पन्न णिव्वत्तइत्ता णं णिअट्टति। कर निवृत्त हो जाता है-सर्वाभ्यन्तर मंडल से दूसरे मंडल में आ जाता है। ५. गंगासिंधूओ णं महाणईओ पवहे गङ्गासिन्ध्वौ महानद्यौ प्रवहे सातिरेकं सातिरेगे चउवीस कोसे वित्यारेणं चतुर्विशति क्रोशं विस्तारेण प्रज्ञप्ते। पण्णत्ताओ। ५. गंगा और सिन्धु-दोनों महानदियों का प्रवाह के स्थान पर विस्तार साधिक चौबीस कोस का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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