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समवायो
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समवाय २४ : सू० ६-१५ ६. रत्तारत्तवतोओ णं महाणदोओ रक्तारक्तवत्यौ महानद्यो प्रवहे सातिरेकं ६. रक्ता और रक्तवती–दोनों महानदियों
पवहे सातिरेगे चउवोसं कोसे चतुर्विशति को विस्तारेण प्रज्ञप्ते। का प्रवाह के स्थान पर विस्तार साधिक वित्यारेणं पण्णत्ताओ।
चौबीस कोस का है। ७. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति ७. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों
अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउवासं एकेषां नैरयिकाणां चविंशति की स्थिति चौबीस पल्योपम की है। पलिओवमाई ठिई पण्णता। पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। ८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं अधःसप्तम्यां पृथिव्यां अस्ति एकेषां ८. नीचे की सातवीं पृथ्वी के कुछ नरयिकों
नेरइयाणं चउवोसं सागरोवमाई नैरयिकाणां चविशति सागरोपमाणि की स्थिति चौबीस सागरोपम की है। ठिई पण्णत्ता।
स्थितिः प्रज्ञप्ता। ६. असुरकुमाराणं देवागं अत्यंगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां ६. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति
चउवोसं पलिओवमाई ठिई चतुर्विशति पल्योपमानि स्थितिः चौबीस पल्योपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता। १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेतु अत्थेगइयाणं सौधर्मेशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां १०. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों
देवाणं चउवासं पलिओवमाइं देवानां चतुर्विशति पल्योपमानि की स्थिति चौबीस पल्योपम की है। ठिई पण्णता।
स्थितिः प्रज्ञप्ता।
टिम-उरिम-गवेज्जागं देवाण अधस्तन-उपरितन-ग्रेवयकाणां देवानां ११. प्रथम त्रिक की ततीय श्रेणी के देयक जहण्णणं चउवासं सागरोवमाई जघन्येन चविशति सागरोपमाणि देवों की जघन्य स्थिति चौबीस सागरोठिई पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता।
पम की है।
१२. जे देवा हेटिम-मज्झिम-गेवेज्जय- ये देवा अधस्तन-मध्यम- १२. प्रथम त्रिक की द्वितीय श्रेणी के अवेयक
विभागेसु देवतार उववण्णा, ग्रेवेयकविमानेषु देवत्वेन उपपन्नाः, विमानों में देवरूप में उत्पन्न होने वाले तेसि ग देवाण उकासेण चउवासं तेषां देवानामुत्कर्षेण चतुविशति देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौबीस सागरोसागरावमाईपिण्णता। सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता।
पम की है।
१३. ते ण देवा चउवासाए अद्धभासाणं ते देवाश्चतुर्विशतेरर्द्धमासानां १३. वे देव चौबीस पक्षों से आन, प्राण,
आणमात वा पाणमांत वा आनन्ति वा प्राणन्ति वा उच्छ्वसन्ति उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं।
ऊससात वा नाससात वा। वा निःश्वसन्ति वा। १४. तेसि णं देवाणं चउवीसाए तेषां देवानां चतुर्विशत्या वर्षसहस्र- १४. उन देवों के चौबीस हजार वर्षों से वाससहस्सेहि आहारट्ठे राहारार्थः समुत्पद्यते।
भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होती समुप्पज्जा । १५. संतेगइया भवसिद्धिया जोवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये १५. कुछ भव-सिद्धिक जीव चौबीस बार
चउवासाए भवग्गहहि चतुविशत्या भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और सिन्झिस्संति बज्झिस्संति भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति । अंत करेंगे। सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
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