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समवायो
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___ समवाय २३ : सू० १३ १३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये १३. कुछ भव-सिद्धिक जीव तेईस बार
तेवीसाए भवग्गहहिं सिझि- त्रयोविंशत्या भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और स्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण- सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति ।
अन्त करेंगे। मंतं करिस्संति।
टिप्पण
प्रस्तुत आलापक में सूत्रकृतांग सूत्र के तेईस अध्ययनों का उल्लेख है। सूत्रकृतांग दूसरा अंग आगम है। उसके दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध में सोलह और दूसरे श्रुतस्कंध में सात अध्ययन हैं । प्रस्तुत सूत्र में उनका एक साथ निर्देश किया है। इनमें प्रथम सोलह अध्ययन प्रथम श्रुतस्कंध के और शेष सात अध्ययन द्वितीय श्रुतस्कंध के हैं।
इन सभी अध्ययनों का विषय उसी आगम से अवसेय है। २. सूत्र २ :
भगवान महावीर को कैवल्य लाभ वैशाख शुक्ला दसमी के दिन चौथे प्रहर में हुआ था।'
एक मतान्तर यह भी है कि बावीस तीर्थंकरों को पूर्वान्ह में और मल्ली तथा महावीर को अपरान्ह में कैवल्य-लाभ हुआ था।
१. प्रावश्यकचूणि, पृष्ठ ३२३ :
वइसाहसुद्ददसमीए पादीणगामिणीए छायाए अभिनिव्वट्टाए पोरुसीए पमाणपत्ताए। २. आवश्यकचूणि, पृष्ठ १५८ : अन्ने भणति ---बावीसाए पुब्बण्हे, मल्लिवीराणं प्रवरहे।
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