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________________ १८ अट्ठारसमो समवाओ : अठारहवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. अट्ठारसविहे बंभे पण्णत्ते, तं अष्टादशविधं ब्रह्म प्रज्ञप्तम्, तद्यथाजहा ओरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अण्णं मणेणं सेवावे, मणेणं सेवतं पि अण्णं न समणुजाणाइ । ओरालिए कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवा, वाया सेवंतंपि अण्णं न समणुजाणा । ओरालिए कामभोगे णेव सयं काएणं सेवइ, नोवि अण्णं कारणं सेवावे, कारणं सेवतं पि अण्णं न समणुजाणाइ । दिव्वे कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि अण्णं न समणजाणाइ । Jain Education International औदारिकान् मनसा सेवते, सेवयते, कामभोगान् नैव स्वयं नापि अन्येन मनसा मनसा सेवमानमप्यन्यं न नाति । श्रदारिकान् कामभोगान् नैव स्वयं वाचा सेवते, नापि अन्येन वाचा सेवयते, वाचा सेवमानमप्यन्यं न समनुजानाति । प्रौदारिकान् कामभोगान् नैव स्वयं कायेन सेवते, नापि अन्येन कायेन सेवयते, कायेन सेवमानमप्यन्यं न समनुजानाति । दिव्यान् कामभोगान् नैव स्वयं मनसा सेवते, नापि अन्येन मनसा सेवयते, मनसा सेवमानमप्यन्यं न समनुजानाति । For Private & Personal Use Only हिन्ही अनुवाद १. ब्रह्मचर्य अठारह प्रकार का है, जैसे--- १. औदारिक कामभोगों का स्वयं मन से सेवन न करे । २. औदारिक कामभोगों का दूसरों को मन से सेवन न कराए । ३. औदारिक कामभोगों का सेवन करने वाले का मन से अनुमोदन भी न करे । ४. औदारिक कामभोगों का स्वयं वचन से सेवन न करे । ५. औदारिक कामभोगों का दूसरों को वचन से सेवन न कराए । ६. औदारिक कामभोगों का सेवन करने वाले का वचन से अनुमोदन भी न करे । ७. औदारिक कामभोगों का स्वयं काया से सेवन न करे । ८. औदारिक कामभोगों का दूसरों को काया से सेवन न कराए । ६. औदारिक कामभोगों का सेवन करने वाले का काया से अनुमोदन भी न करे । १०. दिव्य कामभोगों का स्वयं मन से सेवन न करे । ११. दिव्य कामभोगों का दूसरों को मन से सेवन न कराए। १२. दिव्य कामभोगों का सेवन करने वाले का मन से अनुमोदन भी न करे । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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