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समवायो
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समवाय १७ : सू० १४-२१
१४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १४. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति
सत्तरस पलिओवमाइं ठिई सप्तदश पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। सतरह पल्योपम की है।
पण्णत्ता। १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं सौधर्मेशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां १५. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों
देवाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई देवानां सप्तदश पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति सतरह पल्योपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता। १६. महासुक्के कप्पे देवाणं उक्कोसेणं महाशुक्रे कल्पे देवानामुत्कर्षण सप्तदश १६. महाशुक्रकल्प के देवों की उत्कृष्ट
सत्तरस सागरोवमाइं ठिई सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता। स्थिति सतरह सागरोपम की है। पण्णत्ता।
१७. सहस्सारे कप्पे देवाण जहण्णणं सहस्रारे कल्पे देवानां जघन्येन सप्तदश १७. सहस्रारकल्प के देवों की जघन्य स्थिति
सत्तरस सागरोवमाई ठिई सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता। सतरह सागरोपम की है। पण्णत्ता।
१८. जे देवा सामाणं सुसामाणं ये देवाः सामानं सुसामानं महासामानं १८. सामान, सुसामान, महासामान, पद्म,
महासामाणं पउमं महापउमं कुमुदं पद्म महापद्म कुमुदं महाकुमुदं नलिनं महापद्म, कुमुद, महाकुमुद, नलिन, महाकुमुदं नलिणं महानलिणं महानलिनं पौण्डरीकं महापौण्डरीक महानलिन, पौंडरीक, महापौंडरीक, पोंडरीअं महापोंडरीअं सुक्कं शुक्लं महाशुक्लं सिंहं सिंहावकान्तं शुक्ल, महाशुक्ल, सिंह, सिंहावकान्त, महासुक्कं सीहं सीहोकंतं सीहवी सिंहवीतं भावितं विमानं देवत्वेन सिंहबीत और भावित विमानों में भावि विमाणं देवत्ताए उववण्णा, उपपन्नाः, तेषां देवानामुत्कर्षेण सप्तदश देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों की तेसिणं देवाणं उवकोसेणं सत्तरस सागरोपमाणि स्थिति: प्रज्ञप्ता।
उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १६. ते णं देवा सत्तरसहि अद्धनासेहिं ते देवाः सप्तदशभिः अर्द्धमासैः आनन्ति १६. वे देव सतरह पक्षों से आन, प्राण,
आणमंति वा पाणमंति वा वा प्राणन्ति वा उच्छवसन्ति वा निःश्व- उच्छवास और निःश्वास लेते हैं।
ऊससंति वा नीससंति वा। सन्ति वा। २०. तेसि णं देवाणं सत्तरसहि वास- तेषां देवानां सप्तदशभिर्वर्षसहस्रराहा- २०. उन देवों के सतरह हजार वर्षों से सहस्सेहिं आहारळे समुप्पज्जइ। रार्थः समुत्पद्यते ।
भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होती
२१. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये २१. कुछ भव-सिद्धिक जीव सतरह बार
सत्तरसहि भवग्गहणेहि सिज्झि- सप्तदशैर्भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति भोत्स्यन्ते जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और स्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति सर्वदुःखा- परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं नामन्तं करिष्यन्ति ।
अन्त करेंगे। करिस्संति।
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