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________________ सोलसमो समवानो : सोलहवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. सोलस यगाहा-सोलसगा पण्णता, षोडश च गाथा-षोडशकानि प्रज्ञप्तानि, १. सूत्रकृतांग' के सोलह अध्ययन हैं, तं जहा-समए वेयालिए तद्यथा -समयः वैतालीयं उपसर्गपरिज्ञा जैसे-समय, वैतालीय, उपसर्गपरिज्ञा, उवसग्गपरिण्णा इत्थिपरिण्णा स्त्रीपरिज्ञा निरयविभक्तिः महावीर- स्त्रीपरिज्ञा, निरयविभक्ति, महावीरनिरयविभत्ती महावोरथुई स्तुतिः कुशीलपरिभाषा वीर्य धर्मः स्तुति, कुशीलपरिभाषा, वीर्य, धर्म, कुसीलपरिभासिए वोरिए धम्मे समाधि: मार्गः समवसरणं याथातथ्यं । समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य, समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए ग्रन्थः यमकोयं गाथा। ग्रन्थ, यमकीय और गाथा । गंथे जमईए गाहा। २. सोलस कसाया पण्णत्ता, तं जहा- षोडश कषायाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-- अणंताणुबंधी कोहे अनन्तानुबन्धी क्रोधः अणंताणुबंधो माणे अनन्तानुबन्धि मानं अणंताणुबंधी माया अनन्तानुबन्धिनी माया अणंताणुबंधी लोभे अनन्तानुबन्धी लोभः अपच्चक्खाणकसाए कोहे अप्रत्याख्यानकषायः क्रोधः अपच्चक्खाणकसाए माणे अप्रत्याख्यानकषायं मानं अपच्चक्खाणकसाए माया अप्रत्याख्यानकषाया माया अपच्चक्खाणकसाए लोभे अप्रत्याख्यानकषायो लोभः पच्चक्खाणावरणे कोहे प्रत्याख्यानावरणः क्रोधः पच्चक्खाणावरणे माणे प्रत्याख्यानावरणं मानं पच्चक्खाणावरणा माया प्रत्याख्यानावरणा माया पच्चक्खाणावरणे लोभे प्रत्याख्यानावरणो लोभः संजलणे कोहे संज्वलनः क्रोधः संजलणे माणे संज्वलनं मान संजलणा माया संज्वलनी माया संजलणे लो। संज्वलनो लोभः । २. कषाय सोलह हैं, जैसे १. अनन्तानुबंधी क्रोध २. अनन्तानुबंधी मान ३. अनन्तानुबंधी माया ४. अनन्तानुबंधी लोभ ५. अप्रत्याख्यान-कषाय क्रोध ६. अप्रत्याख्यान-कषाय मान ७. अप्रत्याख्यान-कषाय माया ८. अप्रत्याख्यान-कषाय लोभ ६. प्रत्याख्यानावरण क्रोध १०. प्रत्याख्यानावरण मान ११. प्रत्याख्यानावरण माया १२. प्रत्याख्यानावरण लोभ १३. संज्वलन क्रोध १४. संज्वलन मान १५. संज्वलन माया १६. संज्वलन लोभ । ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस मन्दरस्य पर्वतस्य षोडश नामधेयानि नामधेया पण्णत्ता, तं जहा.- प्रज्ञप्तानि, तद्यथा ३. मन्दर पर्वत के सोलह नाम हैं, जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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