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समवायो
समवाय १५ : सू० १६ १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये १६. कुछ भव-सिद्धिक जीव पन्द्रह बार
पण्णरसहिं भवग्गहणेहि सिज्झि- पञ्चदशभिर्भवग्रहणः सेत्स्यन्ति जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और स्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति ।
अन्त करेंगे। करिस्संति।
टिप्पण
१. परमाधार्मिक (परमाहम्मिया)
नरक सात हैं । नारकीय जीव तीन प्रकार की वेदना का अनुभव करते हैं१. परमाधार्मिक देवों द्वारा उत्पादित वेदना । २. परस्पर में उदीरित वेदना। ३. क्षेत्रविपाकी वेदना।
प्रथम तीन नरकों में नारकीय जीव तीनों प्रकार की वेदनाएं भोगते हैं और शेष चार नरकों में अंतिम दो प्रकार की वेदनाएं भोगी जाती हैं, क्योंकि वहां परमाधार्मिक देवों का अभाव है।
प्रथम तीन नरक पृथिवियां-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में परमाधार्मिक देव नारकीय जीवों को भिन्नभिन्न प्रकार से कष्ट देते हैं। वे देव पन्द्रह प्रकार के हैं । उनके नामों और कार्यों का विवरण सूत्रकृतांग की नियुक्ति में प्राप्त होता है । उनके नाम उनके कार्यानुरूप हैं । वह विवरण इस प्रकार है
१. अंब-अपने निवास स्थान से ये देव आकर अपने मनोरंजन के लिए नारकीय जीवों को इधर-उधर दौड़ाते हैं, पीटते हैं, उनको ऊपर उछालकर शूलों में पिरोते हैं, पृथ्वी पर पटक-पटक कर पीड़ित करते हैं, उन्हें पुनः अंबर-आकाश में उछालते हैं, नीचे फेंकते हैं ।
२. अंबरिषी-मुद्गरों से आहत, खड्ग आदि से उपहत, मूच्छित उन नारकीयों को ये देव करवत आदि से चीरते हैं, रज्जु से बांधते हैं।
३. श्याम-ये देव जीवों के अंगच्छेद करते हैं, पहाड़ से नीचे गिराते हैं, नाक को बींधते हैं, रज्जु से बांधते हैं।
४. शबल-ये देव नारकीय जीवों की आंतें बाहर निकाल देते हैं, हृदय को नष्ट कर देते हैं । कलेजे का मांस निकाल देते हैं। चमड़ी उधेड़ कर उन्हें कष्ट देते हैं।
५. रौद्र-ये देव अत्यन्त क्रूरता से नारकीय जीवों को कष्ट देते हैं ।
६. उपरौद्र-ये देव नारकों के अंग-भंग करते हैं, हाथ-पैरों को मरोड़ देते हैं । ऐसा एक भी क्रूर कर्म नहीं जो ये न कर पाते हों।
७. काल-ये देव नारकीयों को भिन्न प्रकार के कड़ाहों में पकाते हैं, उबालते हैं और उन्हें जीवित मछलियों की तरह सेंकते हैं।
८. महाकाल-ये देव नारकों के छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं। पीठ की चमड़ी उधेड़ते हैं और जो नारक पूर्वभव में मांसाहारी थे उन्हें वह मांस खिलाते हैं।
६. असि-ये देव नारकीय जीवों के अंग-प्रत्यंगों के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े करते हैं, दुःख उत्पादित करते हैं।
१०. असिपत्र (या धनु)–ये देव असिपत्र नाम के वन की विकुर्वणा करते हैं । नारकीय जीव छाया के लोभ से उन वृक्षों के नीचे आकर विश्राम करते हैं। तब हवा के झोंकों से असिधारा की भांति तीखे पत्ते उन पर पड़ते हैं और वे छिद जाते हैं।
११. कुंभि (कुंभ)-ये देव विभिन्न प्रकार के पात्रों में नारकीय जीवों को डालकर पकाते हैं । १२. बालुका-ये देव गरम बालु से भरे पात्रों में नारकों को चने की तरह भुनते हैं ।
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