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समवानो
समवाय १५ : सू० ८-१५
१०. औदारिक-मिश्र-शरीर काय-प्रयोग
११. वैक्रियशरीर काय-प्रयोग १२. वैक्रिय-मिश्र-शरीर काय-प्रयोग
१३. आहारकशरीर काय-प्रयोग १४. आहारक-मिश्र-शरीर काय-प्रयोग।
१० ओरालियमोससरोरकाय- औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगः,
पओगे, ११. वेउब्वियसरीरकायपओगे, वैक्रियशरीरकायप्रयोगः, १२. वेउन्वियमीससरीरकाय- वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगः,
पओगे, १३. आहारयसरीरकायपओगे, आहारकशरीरकायप्रयोगः, १४. आहारयमीससरीरकाय- आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगः,
पओगे, १५. कम्मयसरीरकायपओगे। कार्मणशरीरकायप्रयोगः । ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्यां अस्ति
अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस एकेषां नैरयिकाणां पञ्चदश पल्योप-
पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। मानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। ६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं पञ्चम्यां पृथिव्यां अस्ति एकेषां
नेरइयाणं पण्णरस सागरोवमाइं नैरयिकाणां पञ्चदश सागरोपमाणि ठिई पण्णत्ता।
स्थितिः प्रज्ञप्ता।
१५. कार्मणशरीर काय-प्रयोग।
८. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों
की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की है।
६. पांचवी पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की
स्थिति पन्द्रह सागरोपम की है।
१०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १०. कुछ असुरकूमार देवों की स्थिति
पण्णरस पलिओवमाइं ठिई पञ्चदश पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। पन्द्रह पल्योपम की है।
पण्णत्ता। ११. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइ- सौधर्मेशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां ११. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों
याणं देवाणं पण्णरस पलिओवमाइं देवानां पञ्चदश पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की है। ठिई पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता।
१२. महासूक्के कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं । महाशके कल्पे अस्ति एकेषां देवानां १२. महाशुक्रकल्प के कुछ देवों की स्थिति
पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पञ्चदश सागरोपमाणि स्थिति: पन्द्रह सागरोपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता।
३.जे देवा गंदं सणंदं गंदावत्तं ये देवा नन्दं सुनन्दं नन्दावत नन्दप्रभं १३. नन्द, सूनन्द, नन्दावर्त, नन्दप्रभ, णंदप्पभं णंदकंतं गंदवण्णं णंदलेसं नन्दकान्तं नन्दवर्णं नन्दलेश्यं नन्दध्वज नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य, नन्दध्वज, णंदज्झयं णंदसिंगं गंदसिट्ठ नन्दशृङ्ग नन्दसष्टं नन्दकुटं नन्दोत्तरा- नन्दशृङ्ग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट, नन्दोगंदकूडं णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं वतंसकं विमानं देवत्वेन उपपन्नाः, तेषां तरावतंसक विमानों में देवरूप में देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं देवानामुत्कर्षेण पञ्चदश सागरोपमाणि उत्पन्न होने वाले देवों की उत्कृष्ट उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमाइं स्थितिः प्रज्ञप्ता।
स्थिति पन्द्रह सागरोपम की है। ठिई पण्णत्ता।
१४. ते णं देवा पण्णरसण्हं अद्धमासाणं ते देवाः पञ्चदशानामद्धमासानां १४. वे देव पन्द्रह पक्षों से आन, प्राण,
आणमंति वा पाणमंति वा आनन्ति वा प्राणन्ति वा उच्छवसन्ति उच्छवास और नि:श्वास लेते हैं। ऊससंति वा नीससंति वा। वा निःश्वसन्ति वा।
१५. तेसि णं देवाणं पण्णरसहि तेषां देवानां पञ्चदशभिर्वर्षसहस्र- १५. उन देवों के पन्द्रह हजार वर्षों से वाससहस्सेहि आहारट्ठे राहारार्थः समुत्पद्यते ।
आहार करने की इच्छा उत्पन्न होती समुपज्जइ।
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