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________________ समवाओ ६६ ३. वीर भक्तिकरण के समय किया जाने वाला कायोत्सर्ग ।. ४. चतुर्विंशति तीर्थङ्कर भक्तिकरण के समय किया जाने वाला कायोत्सर्ग | स्वाध्याय के समय किये जाने वाले तीन कृतिकर्म - १. श्रुत भक्तिकरण के समय किया जाने वाला कायोत्सर्ग | २. आचार्य भक्तिकरण के समय किया जाने वाला कायोत्सर्ग । अपराह्न ३. स्वाध्याय के उपसंहार-काल में श्रुत भक्तिकरण के समय किया जाने वाला कायोत्सर्ग । आवश्यक निर्युक्ति की व्याख्या से मूलाचार की टीकागत व्याख्या भिन्न है। मूलाचार की वृत्ति में पूर्वाह्न और 'की अर्थ-योजना में दो विकल्प किए गए हैं : १. ( क ) पूर्वाह्न - दिवस में सात कृतिकर्म । (ख) अपराह्न - रात्रि में सात कृतिकर्म । २. ( क ) पूर्वाह्न - पश्चिम रात्रि से लेकर दिन के तीन प्रहर तक का समय । इस काल मर्यादा के अनुसार- पश्चिम रात्रि में प्रतिक्रमण के समय - चार कृतिकर्म | पश्चिम रात्रि में स्वाध्याय के समय - तीन कृतिकर्म । वन्दना के समय - दो कृतिकर्म | सूर्योदय के समय स्वाध्याय में - तीन कृतिकर्म 1 मध्याह्न वन्दना के समय दो कृतिकर्म । (ख) अपराह्न - दिन के चतुर्थ प्रहर से लेकर रात्रि के प्रथम प्रहर तक का समय । इस काल मर्यादा के अनुसार स्वाध्याय के समय - तीन कृतिकर्म । प्रतिक्रमण के समय - चार कृतिकर्म । वन्दना के समय दो कृतिकर्म । योगभक्ति ग्रहण के समय - एक कृतिकर्म । योगभक्ति उपसंहार के समय - एक कृतिकर्म | रात्रि में प्रथम स्वाध्याय-काल में तीन कृतिकर्म । ४. बलदेव राम (रामे णं बलदेवे ) Jain Education International वृत्तिकार के अनुसार वे पांचवें देवलोक के देव '' हुए ५. बारह मुहूर्त का ( दुवालसमुहुत्तिआ ) की होती है । ' ६. बारह मुहूर्त का ( दुवालसमुहुत्तिओ) सूर्य जब उत्तरायण होता है, तब उसकी अन्तिम रात्रि सबसे छोटी - बारह मुहूर्त्त या चौबीस घड़ी प्रमाण समवाय १२ : टिप्पण ७. बारह नाम हैं (दुवालस नामधेज्जा ) सूर्य जब दक्षिणायन होता है, तब उसका अंतिम दिन सबसे छोटा - बारह मुहूर्त का होता है।' १. मूलाचार, वृत्ति, पृ० ४५५ १. समवायांगवृत्ति, पत्र २३ । रामो नवमो बलदेवः' ३. वही, वृत्ति, पत्र १३ । सर्वजघन्या रात्रिश्तरायणयन्ताहोरात्रस्य रात्रि सा च द्वादशमोहूतिका चतुर्विंशतिघटिकाप्रमाणा । ४. वही, वृत्ति, पन २३ । सर्वजन्म द्वादशीहूर्तिक एवेत्यर्थ स च दक्षिणायनस्तदिवस इति । 1. 34, 5/99 1 स्थानांग सूत्र में इसके आठ नामों का उल्लेख हुआ है। वहां चौथा नाम 'तनु-तनु' है ।' "पञ्चमदेवलोके देवत्वं गतः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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