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________________ १३ तेरसमो समवानो : तेरहवां समवाय संस्कृत छाया अट्ठावंडे अणदादंडे अकम्हादंडे तेरस किरियाठाणा पण्णत्ता त्रयोदश क्रियास्थानानि प्रज्ञप्तानि, तं जहा तद्यथाअर्थदण्डः, अनर्थदण्ड:, हिंसादंडे हिंसादण्डः, अकस्माद्दण्डः, दिदिविप्परिआसिआदंडे दृष्टिविपर्यासिकादण्डः, मुसावायवत्तिए मषावादप्रत्ययः, अदिण्णादाणवत्तिए अदत्तादानप्रत्ययः, अज्झथिए आध्यात्मिकः, माणवत्तिए मानप्रत्ययः, मित्तदोसवत्तिए मित्रदोषप्रत्ययः, मायावत्तिए मायाप्रत्ययः, लोभवत्तिए लोभप्रत्ययः, ईरियावहिए नाम तेरसमे । ऐपिथिको नाम त्रयोदशः। हिन्दी अनुवाद १. क्रियास्थान तेरह हैं', जैसे- १. अर्थ दण्ड-सप्रयोजन हिंसा । २. अनर्थदण्ड-निष्प्रयोजन हिंसा । ३. हिंसादण्ड-हिंसा के प्रति हिंसा का प्रयोग। ४. अकस्मात्-दण्ड-लक्ष्यीकृत प्राणी की हिंसा के लिए प्रवृत्त व्यक्ति द्वारा अलक्ष्यी-कृत प्राणी की हिंसा । ५. दृष्टि-विपर्यास-दण्ड -- मति-भ्रम से होने वाली हिंसा। ६. मृषावाद-प्रत्यय -मृषावाद के निमित्त से होने वाली क्रिया । ७. अदत्तादान-प्रत्यय-अदत्तादान के निमित्त से होने वाली क्रिया। ८. आध्यात्मिक-बाह्य निमित्त के बिना स्वतः मन में उत्पन्न होने वाली क्रिया । ६. मान-प्रत्यय-अभिमान के निमित्त से होने वाली क्रिया । १०. मित्रदोष-प्रत्यय-मित्र-वर्ग के प्रति अप्रियता के निमित्त से होने वाली क्रिया । ११. माया-प्रत्यय-माया के निमित्त से होने वाली क्रिया । १२. लोभ-प्रत्यय-लोभ के निमित्त से होने वाली क्रिया। १३. ऐर्यापथिककेवल योग के निमित्त से होने वाला कर्म-बंधन । २. सौधर्म और ईशानकल्प में विमानों के प्रस्तट तेरह हैं। ३. सौधर्मावतंसक विमान साढ़े बारह लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। २. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु तेरस सौधर्मेशानयोः कल्पयोः त्रयोदश विमाणपत्थडा पण्णता। विमानप्रस्तटाः प्रज्ञप्ताः । ३. सोहम्मवडेंसगे णं विमाणे णं सौधर्मावतंसकं विमानं अर्द्धत्रयोदश अद्धतेरसजोयणसयसहस्साई योजनशतसहस्राणि आयामविष्कम्भेण आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। प्रज्ञप्तम् । ४. एवं ईसाणवडेंसगे वि। एवं ईशानावतंसकमपि। ४. ईशानावतंसक विमान साढ़े बारह लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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