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________________ ३६२ अणुओगदारा से णं तत्थ उहेज्जा' ? नो इणमट्ठे समट्ठे, 'नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ३. से णं भंते ! पोक्खलसंवट्टगस्स' महामेहस्स मज्झमज्भेणं वीइवएज्जा ? हंता वीइवएज्जा | से णं तत्थ उदउल्ले सिया ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ४. से णं भंते ! गंगाए महानईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ? हंता हव्वमागच्छेज्जा | से णं तत्थ विणिघायमावज्जेज्जा ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ । ५. से णं भंते ! उदगावत्तं वा उदगबिंदु वा ओगाहेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा | से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज्ज वा ? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्यं कमइ । गाहा— सत्येण सुतिक्खेण वि, छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सका । तं परमाणु सिद्धा, वयंति 'आई पमाणाणं" ॥१॥ ३६६. अनंताणं वावहारियपरमाणु पोग्गलाणं समुदय समिति-समागमेणं सा एगा उसण्हसहिया इवा, सहसव्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा रहरेणू इ वा, (वालग्गे इवा, लिक्खा इवा, ज्या इवा, जवमज्झे इ वा अंगुले इ वा ? ) ' + सहसहियाओ सा एगा सण्हसहिया, अट्ठ सहसहियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ट रहरेणूओ देवकुरु-'उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं" से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मसाणं वालग्गा हरिवास - रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास - रम्गवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय- हेरण्णवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हेमवय- हेरण्णवयाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह अवर विदेहाणं मनुस्सा से एगे वालग्गे, अट्ठ पुव्वविदेह - अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा भररवयाणं मणुस्साणं से एगे वाली, अट्ठ भरहेरवयाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जया, अट्ठ जुयाओ से एगे जवमज्भे, अट्ठ जवमज्मा से एगे उस्सेहं गुले | ४००. एएवं अंगुलप्पमाणेण छ अंगुलाई पादो, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीस अंगुलाई कुच्छी, छन्नउई अंगुलाई से एगे दंडे इ वा धणू इवा जुगे इ वा नालिया इ वा अक्खे इ वा मुसले इवा, एएणं धणुप्पमाणेणं दो १. दज्भिज्जा ( क ) ; नस्सेज्जा ( ख, ग ) । २. नो जाव कमइ (क) सर्वत्र ३. पुक्खर० ( ख, ग ) । ४. आइप्यमाणा ( क ) ; आदिप्यमाणाण Jain Education International ख, ग) । ५. कोष्ठकवर्त्ती पाठ: भगवती (६११३४ ) सूत्रस्याधारेण स्वीकृतः । प्रकरणमादृश्यादसो अत्रापि युज्यतेस्म, किन्तु लिपिकाले संक्षेपीकरणपरम्परया कानिचित् पदानि न लिखितानीति प्रतीयते । ६. कुरूणं मणुयाणं ( ख, ग ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003584
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages135
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size4 MB
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