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________________ पढमं पण्णवणापर्यं ३७ ११६. से किं तं सयंबुद्धछउ मत्थखीणक सायवीतरागचरितारिया ? सयंबुद्धछ उमत्थखीण सायवीतरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- पदमसमयस्यं बुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य अपढमसमय सयं बुद्धछ उमत्थखीणक सायवीतरागचरित्तारिया य, अह्वा चरिमसमयस्यंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीय रागचरितारिया य अचरिमसमय सयं बुद्धछउमत्थखीणक सायवीय रागचरितारिया य से त्तं सयं बुद्धछ उमत्थखीणकसाथ वीतरागचरितारिया || १२०. से किं तं बुद्धबोयिछउमत्थखीणक सायवीतरागचरितारिया ? बुद्धबोहियछउमत्थखीणक सायवीतरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- पढमसमयबुद्धवोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य अपढमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थखीणकसायवीतरामचरितारिया य, अहवा चरिमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य अरिममबुद्धवोहियछ उमत्थखी कसायवीय रागचरितारिया य से तं बुद्धबोहियछउमत्थखोण कसायवीयरागचरित्तारिया । से त्तं छउमत्थखीणकसायवीत रागचरितारिया ॥ १२१. से किं तं केवलिखीणकसायवीतरागचरितारिया ? केवलिखीणकसायवीतरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा --- सजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागचरितारिया अजोगकेवलिखीणकसायवीय रागचरितारिया य || १२२. से कि तं सजोगिकेव लिखी कसायवीयरागचरितारिया ? सजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागचरितारिया दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागचरितारिया य अपढमसमयसजोगिकेवलिखी कसायवीयरागचरितारिया य अहवा चरिमसमयसजोगि के वलिखीणक सायवीतरागचरितारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीणक सायवीयरागचरितारिया य से त्तं सजोगिकेवलिखी कसायवीयरागचरितारिया || १२३. से किं तं अजोगिकेवलिखी कसायवीयरागचरितारिया ? अजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरितारिया य अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरितारिया य, अहवा चरिमसमयअजोगि केवलिखीणक सायवीय रागचरितारिया य अचरिमसमयअजोगिhaलिखी कसायवीतरागचरितारिया य । से त्तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरितारिया । से त्तं केवलिखीणकसायवीतरागचरितारिया । से त्तं खीणकसायवीतरागचरितारिया । से तं वीयरागचरितारिया । 1 १२४. अहवा चरितारिया' पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - सामाइयचरितारिया छेदोवद्वावणियचरितारिया परिहारविसुद्धियचरितारिया सुहुमसंपरायचरितारिया अहक्खायचरितारिया || १२५. से कि तं सामाइयचरितारिया ? सामाइयचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्तरियसामाइयचरितारिया य आवकहियसामाइयचरितारिया य । से तं सामाइयचरितारिया || १. चारितारिया (ख, घ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003571
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages745
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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