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________________ ३६ पण्णवणासुतं कसायवीतरागदंसणारिया य अपढमसमयअजोगि केवल खीणकसायवीतरागदंसणारिया य अहवा चरिमसमयअजोगिकेव लिखीणकसायवीत रागदंसणारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवल खीणक सायवीयरागदंसणारिया य से त्तं अजोगिकेवलिखीणक सायवीतरागदंसणारिया से तं केवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया से तं खीणकसायवीतरागदंसणारिया । से तं वीयरागदंसणारिया । से तं दंसणारिया || चरितारिय-पदं १११. से किं तं चरितारिया ? चरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सरागचरितारिया य वीयरागवरितारिया य ॥ ११२. से किं तं सरागचरितारिया ? सरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहुमसंप रायस रागचरितारिया य वायरसंपरायसरागचरितारिया य ।। ११३. से किं तं सुहुमसंपरायसरागचरितारिया ? सुहुमसंपरायसरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमयसुहुमसंपरायसरागचरितारिया य अपढमसमयसुहुम संप रायसरागचरितारिया य, अहवा चरिमसमयसुहमसंप रायसरागचरितारिया य अचरिमसमय सुहुम संप रायसरागचरितारिया य अहवा सुहुमसंपरायसरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संकिलिस्समाणा य विसुज्झमाणा य से त्तं सुहुमसंपरायसरागचरितारिया || ११४. से किं तं बादरसंप रायसरागचरित्तारिया ? वादरसंपरायसरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमयवादरसंपरायसरागचरितारिया य अपदमसमयबादरसंपरायसरागचरितारिया य, अहवा चरिमसमयवादरसंपरायसरागचरितारिया य अचरिमसमयबादरसंपरायसरागचरितारिया य, अहवा वादरसंप रायसरागच रित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पडिवाती य अपडिवाती य से त्तं बादरसंपरायसरागचरितारिया । से त्तं सरागचरित्तारिया || ११५. से किं तं वीयरागचरितारिया ? बीयरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उवसंतकसायवीय रागचरितारिया य खीणकसायवीतरागचरितारिया य ॥ ११६. से किं तं उवसंत कसायवीयरागचरितारिया ? उवसंत कसायवीयरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- पढमसमयउवसंत कसायवीयरागचरितारिया य अपढमसमय उवसंत कसायवीय रागचरितारिया थ, अहवा चरिमसमय उवसंत कसायवीय रागचरितारिया य अचरिमसमयउवसंत कसायवीयराग नरित्तारिया य से त्तं उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया || ११७. से कि तं खीणकसायवीय रागचरितारिया ? खीणकसायवीयरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - छउमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य केवलिखीणकसायवीतरागचरितारिया य ॥ ११८. से किं तं छउमत्थखीण कसायवीतरागचरितारिया ? छउमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य बुद्धबोहियछ उमत्थ खीण कसायवीय रागचरितारिया य ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003571
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages745
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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