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________________ पष्णवणासुतं १२६. से किं तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया? छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता. तं जहा-साइयारछेदोवट्ठावणियचरित्तारिया य णिरइयारछेदोवढावणियचरित्तारिया य । से तं छेदोबट्ठावणियचरित्तारिया ॥ १२७. से कि तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ? परिहारविसुद्धियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-निविसमाणपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य निविट्ठकाइयपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य । से तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ॥ १२८. से कि तं सुहमसंपरायचरित्तारिया? सुहमसंपरायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--संकिलिस्समाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य विसुज्झमाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य । से तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया ।। १२६ से कि तं अहक्खायचरित्तारिया ? अहक्खायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-छउमत्थअहक्खायचरित्तारिया य केवलिअहक्खायचरित्तारिया य। से तं अहक्खायचरित्तारिया। से तं चरित्तारिया। से तं अणिडिढपत्तारिया। से तं आरिया। से तं कम्मभूमगा । से तं गब्भवक्कंतिया । से तं मणुस्सा ।। देवजीव-पदं १३०. से कि तं देवा ? देवा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा---भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया ।। १३१. से कि तं भवणवासी ? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता, तं जहा--असुरकुमारा नागकुमारा सुवण्णकुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दीवकुमारा उदहिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा थणियकुमारा। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं भवणवासी॥ १३२. से किं तं वाणमंतरा ? वाणमंतरा अदुविहा पण्णत्ता, तं जहा-किन्नरा किंपरिसा महोरगा गंधवा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं वाणमंतरा ।। १३३. से किं तं जोइसिया ? जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा--चंदा सूरा गहा 'नक्खत्ता तारा" 1 ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं जोइसिया।। १३४. से किं तं वेमाणिया? वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–कप्पोवगा य कप्पातीताय ।। १३५. से किं तं कप्पोवगा ? कप्पोवगा वारसविहा पण्णत्ता, तं जहा--सोहम्मा ईसाणा सणंकुमारा माहिंदा बंभलोया लतया सुक्का' सहस्सारा आणता पाणता आरणा अच्चुता । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से तं कप्पोवगा। १३६. से किं तं कप्पातीया ? कप्पातीया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-गेवेज्जगा य अणुत्तरोववाइया य॥ १. तारा नक्खत्ता (ख)। २. महासुक्का (ग,घ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003571
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages745
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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