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________________ १३८६ १४१५ १।४२४ १।४२५ १।४३४ २।२६ २।४१ २।५७ २/६६ २।६६ २१६८ २६८ २१६८ २६४ २१६४ ३४ ३।२१ ३।२५ ३।३३ ३।११२ ३।११२ ३।१४३ ३ । १४८ ५।३ ५।६० ५/७६ ५।८२ ५।११० ५।१३६ ६।६३ ६।६३ ६।७६ ६६० Jain Education International ह्रस्सी जहा सामाइयस्स जइ किवणस्स मागहा विट्टभोई सामाइयमाइयाई धमणि० रयणीए आरूहेइ खाइमसाइमं सयमेव अवं गुय० खाइमसाइमेणं अयमेयारूवे ईसा मोयाओ खाइमसाइमेण सय णिज्जाओ तिर्वात वेयति समय ० 'पडीण' आउए रयहरणमायाए auraडियं समयंसि 'लोइय' सकसाईहि सजोगी नागो कण्हरातीओ १७ हुस्सी, ह्रस्वी जधा सामातियस्स जति ( अ, क, ब, म, स) किविणस्स (ता) मागधा (ता) ( अ, ता, ब, म, स ) वियट्टभोती सामाइगमादीयाति सामातिय मातियाइं ( स ) (क) धवणि० (क, ता, ब, म ) रतणीए (ATT) आरूभेइ (क, म) खातिमसातिमं ( ब, स ) (ता) (म) ( ब, स ) (ता) (AT) (क, ता) सतमेव अवंगत ० खातिमसातिमेणं अतमेतारूवे तीसा मोतातो खातिमसातिमेणं सतणिज्जाओ तिपति वेदति समत० 'पदीण' आउगे रतहरणमाताए वेदावडियं समतंसि 'लोतिय' सकसादीहिं सजोति नाओ कण्हरायीतो हस्सी (क) (ब); ( स ) ; ( अ, ब, स ) For Private & Personal Use Only (12) CHEEEEEEEEEEEEEEE ( ब, स ) (ता) (ता) (ता) (ता) (ता, म) (ता) (ता) (ब, म) (ता) (अ, स) (ता) (at) (ता, म) (ब) www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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