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________________ पाठों के स्थान पर भी 'जाव' पद लिखा हुआ मिलता है। इस प्रकार के पाठ-संक्षेप लिपिकारों द्वारा समय-समय पर किए हुए प्रतीत होते हैं। वर्तमान में प्रस्तुत आगम की मुख्य दो वाचनाएं मिलती हैं- संक्षिप्त और विस्तृत । संक्षिप्त वाचना का ग्रन्थ परिमाण १५७५१ अनुष्टुप् श्लोक परिमाण माना जाता है । विस्तृत वाचना का ग्रन्थ परिमाण सवा लाख अनुष्टप श्लोक माना जाता है। अभयदेवसूरि ने संक्षिप्त वाचना को ही आधार मानकर प्रस्तुत आगम की वृत्ति लिखी है। हमने इस पाठ संपादन में 'जाव' आदि पदों द्वारा समर्पित पाठों की यथावश्यक पूर्ति की है। उससे इसका ग्रन्थ परिमाण १६३१६ अनुष्टुप् श्लोक, १६ अक्षर अधिक हो गया है। शब्दान्तर और रूपान्तर (ता) (क) (क, ता, म) (ता) (ता) निगम अप्पिया एते सिं वइ० वइ० मायो पोयंत कज्ज पाणाइवाय नेरइयाणं उवओगे ११४६ ११२२४ श२२४ १।२३७ ११२३६ ११२४५ श२७३ १२२७६ श२८१ ११२८१ श२६८२ १॥३१५ ११३५४ ११३५७ ११३५७ ११३६३ ११३६४ ११३६५ ११३७० ११३७१ ११३७१ ११३७१ ११३८५ नियम अप्पिता तेतेसिं वति० वयि० माओ० पोदंतं किज्जइ पाणायवाय नेरतियाणं ओवओगे अधे करिज्ज करेज्जा अहे करेज्ज दुहिए दुक्खिए दुग्गंधे दुगंधे (क, ता, ब, म, स) (ब, स) (स) (अ, ब, स) (ता) (ता) (क) (स) (क, ता, म) (अ, म, स) (क, ता) (ता) (अ, ब) (ता) (ता) (क, ता) (ता) (ब, स) आरिय चउ पाओसिया सय संधिज्जमाणे निसिढे काइयाए पाणाइवाय० यारियं चतु पायोसिया सत संधेज्जमाणे निसट्टे कातियाए पाणायवाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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