________________ स्कन्ध निरूपण [47 [69 उ.] पायुष्मन् ! भावस्कन्ध दो प्रकार का कहा है। वह इस तरह-१. आगमभावस्कन्ध 2. नोग्रागमभावस्कन्ध / 70. से कितं आगमतो भाबखंधे? आगमतो भावबंधे जाणए उवउत्ते / से तं आगमतो भायखंधे। [70 प्र.] भगवन् ! आगमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [70 उ.] आयुष्मन् ! स्कन्ध पद के अर्थ का उपयोग युक्त ज्ञाता आगमभावस्कन्ध है। 71. से कि तं नोआगमओ भावखंधे ? नोआगमओ भावखंधे एएसि चेव सामाइयमाइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदयसमिइसमागमेणं निष्फन्ने आवस्सगसुयक्खंधे भावखंधे ति लब्भइ / से तं नोआगमतो भावखंधे / से तं भावखंधे / [71 प्र. भगवन् ! नोप्रागमभावस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [71 उ.] आयुष्मन् ! परस्पर-संबन्धित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय के मिलने से निष्पन्न अावश्यकश्रुतस्कन्ध नोग्रागमभावस्कन्ध कहलाता है। इस प्रकार से भावस्कन्ध की वक्तव्यता जानना चाहिए। विवेचन-इन सूत्रों में भावस्कन्ध का स्वरूप स्पष्ट किया है। इनमें से प्रागमभावस्कन्ध की व्याख्या तो पागमभावावश्यक प्रतिपादक सूत्र की जैसी जानना चाहिए / नोग्रागमभावस्कन्ध की स्वरूपव्याख्या में 'समुदयसमिइसमागमेणं' पद मुख्य है। इसमें 'समुदयसमिइ' का अर्थ है सामायिक आदि छह अध्ययनों के समूह का अव्यवहित मिलना तथा समागम यानि षट्प्रदेशी स्कन्ध की तरह छह अधिकार वाले अावश्यकश्रुतस्कन्ध का प्रात्मा में एक रूप होना। अर्थात् लोहशलाकाओं की तरह परस्पर निरपेक्ष सामायिक आदि पट अावश्यकों के समुदाय-समिति-समागम से निष्पन्न आवश्यकश्रुतस्कन्ध का नाम भावस्कन्ध है / यही भावस्कन्ध जब मुखवस्त्रिका, रजोहरण ग्रादि की व्यापार रूप क्रिया से विवक्षित किया जाता है तब वह नोआगमभावस्कन्ध है। यहाँ नोग्रागम में प्रयुक्त 'नो' शब्द सर्वथा आगमभाव का निषेधक नहीं है किन्तु एकदेश का निषेधक है। स्कन्धपदार्थ का ज्ञान पागम, उसमें ज्ञाता का उपयोग भाव और रजोहरण आदि द्वारा की जाने वाली प्रमार्जना आदि त्रियाय नोमागम हैं / स्कन्ध के पर्यायवाची नाम 72. तस्स णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति / तं जहा---- गण काय निकाय खंध वग्ग रासी पुजे य पिड नियरे य / संघाय आकुल समूह भावखंधस्स पज्जाया // 5 // से तं खंधे। [72.] उस भावस्कन्ध के विविध घोषों एवं व्यंजनों वाले एकार्थक (पर्यायवाची) नाम इस प्रकार हैं-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org