________________ स्कन्ध निरूपण 57. (1) से कि तं आगमओ दव्वखंधे ? आगमओ दश्वखंधे जस्स णं खंधे इ पयं सिक्खियं ठियं जियं मियं जाव णेगमस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगे दव्यखंधे, दो अणवत्ता आगमओ दो (पिण) दव्वखंधाई, तिणि अणवत्ता आगमओ तिणि दव्वखंधाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाई ताई दम्वखंधाई। [57 प्र. 1] भगवन् ! अागमद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? {57 उ. 1] आयुष्मन् ! जिसने स्कन्धपद को गुरु से सीखा है, स्थित किया है, जित, मित किया है यावत् नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगम से एक द्रव्यस्कन्ध है, दो अनुपयुक्त आत्मायें दो, तीन अनुपयुक्त आत्मायें तीन आगमद्रव्यस्कन्ध हैं, इस प्रकार जितनी भी अनुपयुक्त आत्मायें हैं, उतने ही प्रागमद्रव्यस्कन्ध जानना चाहिये / (2) एवमेव ववहारस्स वि / 2. इसी तरह (नगमनय की तरह) व्यवहारनय भी आगमद्रव्यस्कन्ध के भेद स्वीकार करता है। (3) संगहस्त एगो वा अणेगा वा अणुक्उत्तो वा अणुवउत्ता वा दबखंधे वा दव्यखंधाणि वा से एगे दव्वखंधे। 3. सामान्यमात्र को ग्रहण करने वाला संग्रहनय एक अनपयक्त प्रात्मा एक द्रव्यस्कन्ध और अनेक अनुपयुक्त आत्मायें अनेक प्रागमद्रव्यस्कन्ध ऐसा स्वीकार नहीं करता, किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यस्कन्ध मानता है। (4) उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं णेच्छति / 4. ऋजुसूत्रनय से एक अनुपयुक्न अात्मा एक आगमद्रव्यस्कन्ध है / वह भेदों को स्वीकार नहीं करता है। (5) तिण्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू / कम्हा ? जइ जाणए कहं अणुवउत्ते भवति ? से तं आगमओ दवखंधे। 5. नीनों शब्दनय ज्ञायक यदि अनुपयुक्त हो तो उसे अबस्तु-असत् मानते हैं / क्योंकि जो ज्ञायक है वह अनुपयुक्त नहीं होता है / यह पागमद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है / विवेचन—यहाँ अागमद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप एवं तद्विषयक नय-विवक्षाओं का उल्लेख किया है। इन सबका वर्णन पूर्वोक्त आवश्यक के स्थान पर स्कन्ध पद रखकर पागमद्रव्यावश्यक की तरह जानना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org