________________ 4.] [अनुयोपद्वारसूत्र खंधं (स्कन्ध) का अर्थ है पुद्गलप्रचय-पुद्गलों का पिंड / समूह-समुदाय, कंधा, वृक्ष का धड़ (जहाँ से शाखायें निकलती हैं) के लिये भी स्कन्ध शब्द का प्रयोग होता है / नाम-स्थापनास्कन्ध 53. से कि तं नामखंधे ? नामखंधे जस्स गं जीवस्स वा अजीवस्स वा जाव खंधे ति णामं कज्जति / से तं णामखंधे। [53 प्र.] भगवन् ! नामस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [53 उ.] आयुष्मन् ! जिस किसी जीव या अजीव का यावत् स्कन्ध यह नाम रखा जाता है, उसे नामस्कन्ध कहते हैं / 54. से कि तं ठवणाखंधे ? ठवणाखंधे जणं कटुकम्मे वा जाव खंधे इ ठवणा ठविति / से तं ठेवणाखंधे। [54 प्र. भगवन् ! स्थापनास्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [54 उ.] आयुष्मन् ! काष्ठादि में 'यह स्कन्ध है' इस प्रकार का जो आरोप किया जाता है, वह स्थापनास्कन्ध है। 55. णाम-ठवणाणं को पतिविसेसो ? नाम आबकहिथं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। [55 प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? [55 उ.] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक (वस्तु के अस्तित्व रहने तक) होता है परन्तु स्थापना इत्वरिक-स्वल्पकालिक और यावत्कथिक दोनों प्रकार की होती है। विवेचन—ऊपर नाम और स्थापना स्कन्ध का स्वरूप बतलाया है। उनकी विशेष व्याख्या नाम स्थापना आवश्यक के अनुरूप समझ लेनी चाहिये। द्रव्यस्कन्ध 56. से कि तं दध्वखंधे ? दव्वखंधे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा--आगमतो य 1 नोआगमतो य 2 / [56 प्र.] भगवन् ! द्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [56 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यस्कन्ध दो प्रकार का है / यथा--१. आगमद्रव्यस्कन्ध और 2. नोग्रागमद्रव्यस्कन्ध / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org