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________________ 1. श्रुत, 2. सूत्र, 3. ग्रन्थ, 4. सिद्धान्त, 5. शासन, 6. प्राज्ञा, 7. वचन, 8. उपदेश, 9. प्रज्ञापना, 10. प्रागम, ये सभी श्रु त के एकार्थक पर्याय हैं / इस प्रकार से त की वक्तव्यता समाप्त हुई / विवेचन यहाँ श्रु त के पर्यायवाची नामों को गिनाया है, जिनमें शब्दभेद होने पर भी अर्थभेद नहीं है। क्योंकि 1. गुरु के समीप सुने जाने के कारण यह श्रत है। 2. अर्थों की सूचना मिलने के कारण इसका नाम सूत्र है। 3. तीर्थकर रूप कल्पवृक्ष के बचन रूप पुष्यों का प्रथन होने से इनका नाम ग्रंथ है। 4. प्रमाणसिद्ध अर्थ को प्रकट करने वाला-बताने वाला होने से यह सिद्धान्त है। 5. मिथ्यात्वादि से दूर रहने की शिक्षा-सीख देने के कारण अथवा मिथ्यात्वी को शासित, संयमित करने वाला होने से यह शासन है।' 6. मुक्ति के लिये आज्ञा देने वाला होने से अथवा मोक्षमार्गप्रदर्शक होने से इसे अाज्ञा कहते हैं। 7. वाणी द्वारा प्रकट किये जाने से यह वचन है। 8. उपादेय में प्रवृत्ति और हेय से निवृत्ति का उपदेश (शिक्षा) देने वाला होने से इसे उपदेश कहते हैं। 9. जीवादिक पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का प्ररूपण करने वाला होने से यह प्रमाफ्ना है। 10. आचार्य परंपरा से पाने अथवा आप्तवचन रूप होने से यह पागम है। इस प्रकार श्रु ताधिकार के अधिकृत विषयों का विवेचन समाप्त हुआ। स्कन्ध-निरूपण के प्रकार 52. से कि तं खंधे ? खंधे चउविहे पण्णत्ते / तं जहा- नामखधे 1 ठवणाखंधे 2 वन्वखंधे 3 भावखंधे 4 // [52 प्र.] भगवन् ! स्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [52 उ.] आयुष्मन् ! स्कन्ध के चार प्रकार हैं। वे इस तरह-१. नामस्कन्ध, 2. स्थापनास्कन्ध, 3 द्रव्यस्कन्ध, 4 भावस्कन्ध / विवेचन- 'खंचं निक्सिविस्सामि' स्कन्ध का निक्षेप करूंगा-इस प्रतिज्ञा के अनुसार सूत्र में निक्षेपविधि से स्कन्ध की प्ररूपणा प्रारम्भ की गई है। 1. हारिभद्रीया और मलधारियावृत्ति में शासन के स्थान पर पाठान्तर के रूप के प्रवचन शब्द है। जिसका अर्थ यह है कि प्रशस्त-प्रधान-श्रेष्ठ-प्रथम वचन होने से इसका नाम प्रवचन है--'प्रशस्तं प्रथम वा वचनं प्रवचनम् / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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