________________ 3j [अनुयोगद्वारसूत्र लोकोत्तरिक भावश्रुत 50. से कि तं लोगोत्तरियं भावसुयं ? ___ लोगोत्तरियं भावसुयं जं इमं अरहतेहि भगवंतेहिं उत्पन्ननाण-दसणधरोहि तीत-पाप्पन्न-मगावतजाणाह सम्वन्नहि सव्वदरिसोहि तेलोक्कवाहिय-महिय-पूइहि अपहिहयवरनाण-दंसणधरेहि पणोतं दुवालसंग गणिपिडगं / तं जहा--आयारो 1 सूयगडो 2 ठाणं 3 समवाओ 4 वियाहपण्णत्ती 5 नायाधम्मकहाओ 6 उवासगदसाओ 7 अंतगडदसाओ 8 अणुत्तरोववाइयदसाओ 9 पण्हावागरणाई 10 विवागसुयं 11 दिदिवाओ 12 य / से तं लोगोत्तरिय भावसुयं / से तं नोआगमतो भावसुयं / से तं भावसुयं / [50 प्र.] भगवन् ! लोकोत्तरिक (नोग्रागम) भावश्रुत का क्या स्वरूप है ? |50 उ.] अायुष्मन् / ( ज्ञान-दर्शनावरण कर्म के क्षय से ) उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करने वाले, भूत-भविष्यत् और वर्तमान कालिक पदार्थों को जानने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा अवलोकित, महित-पूजित, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहंत भगवन्तों द्वारा प्रणीत 1 आचारांग, 2 सूत्रकृतांग, 3 स्थानांग, 4 समयायांग, 5 व्याख्याप्रज्ञप्ति, 6 ज्ञातृधर्मकथा, 7 उपासकदशांग, 8 अन्तकृद्दशांग, 9 अनुत्तरोपपातिकदशांग, 10 प्रश्नव्याकरण, 11 विपाकश्रुत, 12 दृष्टिवाद रूप द्वादशांग, गणिपिटक लोकोत्तरिक नोपागम भावश्रुत हैं। इस प्रकार से नोपागम भावश्रुत का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन--सूत्र में नोग्रागम की अपेक्षा लोकोत्तरिक भावश्रुत का स्वरूप बतलाया है / अर्हत् भगवन्तों द्वारा प्रणीत गणिपिटक में उपयोगरूप परिणाम होने से भावश्रुतता है और यह उपयोग रूप परिणाम चरणगुण-चारित्रगुण से युक्त है तो वह नोग्रागम से भावश्रुत है / क्योंकि चरणगुण क्रिया रूप है और क्रिया आगम नहीं होती है। इस प्रकार यहाँ 'नो' शब्द एकदेशनिषेधक रूप में प्रयुक्त हुआ है। तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा अर्थतः प्ररूपित प्राचार प्रादि द्वादश अंग गणिपिटक लोकोत्तरिक भावश्रुत हैं। श्रुत के नामान्तर 51. तस्स णं इमे एगढिया नाणाघोसा नाणावंजणा नामधेज्जा भवंति / तं जहा सुय सुत्त गंथ सिद्धत सासणे आण वयण उबदेसे / पण्णवण आगमे या एगट्ठा पज्जवा सुते // 4 // से तं सुयं / [51] उदात्तादि विविध स्वरों तथा ककारादि अनेक व्यंजनों से युक्त उस श्रुत के एकार्थवाचक (पर्यायवाची) नाम इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org