________________ श्रुत निरूपण [37 अज्ञानिक पद में न समास अल्पार्थ का बोधक है, अत: अज्ञानिक का तात्पर्य 'अल्पज्ञान वाले' जानना चाहिये तथा ऐसे अल्पज्ञानी सम्यग्दृष्टि भी होते हैं-अतः उनकी निवृत्ति के लिये मिथ्यादृष्टि पद दिया है। सूत्रोक्त कतिपय ग्रन्थों के नाम तो सर्वविदित हैं और शेष अप्रसिद्ध ग्रन्थों का परिचय इस प्रकार है भीमासुरुक्कं-भीमासुरोक्त, एक जैनेतर प्राचीन शास्त्र / संभवतः इसमें अंगविद्या का वर्णन किया गया होगा। __कोडिल्लयं-कौटिल्यक-चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र / अथवा कोडिल्ल यानी मुगदर / अतः मुग्दर आदि शस्त्रों की निर्माण विधि सूचक शास्त्र / घोडमुहं-घोटमुख, अश्वादि पशुओं का वर्णन करने वाला शास्त्र / सगडद्दिा -शकटभद्रिका-शकटव्यूह आदि के रूप में सैन्यरचना की विधि बताने वाला शास्त्र। कप्पासिय-कार्यासिक-कपास आदि से सूत, कपड़ा आदि बनाने की विधि बताने वाला शास्त्र / नागसुहुम-नागसूक्ष्म-एक जैनेतर शास्त्र / संभवतः इसमें सर्प आदि विषैले जीव-जन्तुओं का वर्णन किया गया होगा। कणगसत्तरी-कनकसप्तति-एक प्राचीन जैनेतर शास्त्र / संभव है इसमें सोने आदि धातुओं का अथवा सोने के तार से मिश्रित कपड़ा बनाने की विधि का वर्णन किया गया हो। वइसेसिय-वैशेषिक, कणाद मुनि द्वारा प्ररूपित दर्शनविशेष-वैशेषिकदर्शन / बुद्धवयण-बुद्धवचन, तथागत बुद्ध द्वारा प्ररूपित दर्शन-बौद्ध दर्शन / वेसिय-वैशिक-कामशास्त्र, व्यापार-व्यवसाय का शास्त्र / काविल–कापिल, कपिल ऋषिरचित दर्शन–सांख्यदर्शन / लोयायय-लोकायत, बृहस्पतिरचित शास्त्र–चार्वाकदर्शन। सद्वितंत-षष्ठितंत्र--सांख्यदर्शन अथवा धूर्तता सिखाने वाला शास्त्रविशेष / माढर-माठर, शास्त्रविशेष / बहत्तर कलाओं के नाम समवायांग आदि सूत्रों से जान लेना चाहिये। सामवेद, ऋगवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद ये चार वेद प्रसिद्ध हैं तथा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, ये वेदों के छह अंग और इनकी व्याख्या रूप ग्रन्थ उपांग हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org