________________ 42] [अनुयोगद्वारसूत्र नोश्रागमद्रव्यस्कन्ध 58. से किं तं णोआगमतो दवखंधे ? पोआगमतो बब्वखंधे तिबिहे पण्णत्ते / तं जहा-जाणगसरीरदब्वखंधे 1 भवियसरीरदव्यखंधे 2 जाणगसरीरभक्यिसरीरवइरित्ते दश्वखंधे 3 / [58 प्र.] भगवन् ! नोग्रागमद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [58 उ.] आयुष्मन् ! नोआगमद्रव्यस्कन्ध तीन प्रकार का है। यथा-१. ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध, 2. भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध और 3. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध / जायकशरीरद्रव्यस्कन्ध 59. से कि तं जाणगसरीरदब्वखंधे ? जाणगसरीरदव्वखंधे खंधे 6 पयस्थाहिगार-जाणगस्स जाव खंधे इ पयं आवियं पण्ण वियं परूपियं जाव से तं जाणगसरीरदन्वखंधे / [59 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [59 उ.] आयुष्मन् ! स्कन्धपद के अर्थाधिकार को जानने वाले यावत् जिसने स्कन्ध पद का (गुरु से) अध्ययन किया था, प्रतिपादन किया था, प्ररूपित किया था, आदि पूर्ववत् समझना चाहिए / यह ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है / विवेचन--सूत्र में नोपागम ज्ञायकशरीरद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप बताया है। जिसका विशद अर्थ पूर्वोक्त ज्ञायकशरी रद्रव्यावश्यक के सदृश जानना चाहिये / मात्र आवश्यक के स्थान पर स्कन्ध शब्द का प्रयोग किया जाए। सूत्रगत दो 'जाव' पदों द्वारा सूत्र 17 में उल्लिखित पदों को ग्रहण करना चाहिये / नोग्रागम-भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध 60. से कि तं भवियसरीरदश्वखंधे ? भवियसरीरदव्वखंधे जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जाव खंधे इ पयं सेकाले सिक्खिस्सइ / जहा को दिळंतो? अयं महुकुमे भविस्सइ, अयं घयकु मे भविस्सति / से तं भवियसरीरदब्वखंधे। [60 प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [60 उ.] अायुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर यथाकाल कोई योनिस्थान से बाहर निकला और वह यावत् भविष्य में 'स्कन्ध' इस पद के अर्थ को सीखेगा (किन्तु अभी नहीं सीख रहा है), उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्यस्कन्ध है / शिष्य-इसका दृष्टान्त ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org