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________________ 34] [अनुयोगद्वारसूत्र [42 प्र.] भगवत् ! बोंडज किसे कहते हैं ? [42 उ.] अायुष्मन् ! बोंड--कपास या रुई से बनाये गये सूत्र को कहते हैं। 43. से कि तं कीडयं ? कीडयं पंचविहं पण्णत्तं / तं जहा-पट्टे 1 मलए 2 अंसुए 3 चोणंसुए 4 किमिरागे 5 / से तं कीडयं। [43 प्र.] भगवन् ! कोटजसूत्र किसे कहते हैं। _ [43 उ.] अायुष्मन् ! कीटजसूत्र पांच प्रकार का है-१. पट्ट, 2. मलय, 3. अंशुक, 4. चीनांशुक, 5. कृमि राग / 44. से कि तं बालयं ? वालयं पंचविहं पण्णतं / तं जहा-उण्णिए 1 उट्टिए 2 मियलोमिए 3 कुतवे 4 किट्टिसे 5 / से तं वालयं। [44 प्र.] भगवन् ! वालज सूत्र का क्या स्वरूप है ? / [44 उ.] अायुष्मन् ! वालज सूत्र के पांच प्रकार हैं- 1. प्रोणिक, 2. औष्ट्रिक, 3. मृगलोमिक, 4. कौतव, 5. किट्टिस / 45. से कि तं वक्कयं ? वक्कयं सणमाई / से तं वक्कयं / से तं जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दठवसुयं / से तं मोआगमतो दव्वसुयं / से तं दध्वसुयं / [45 प्र.] भगवन् ! बल्कज किसे कहते हैं ? [45 उ.] अायुष्मन् ! सन आदि से निर्मित सूत्र को कहते हैं / इस प्रकार यह जायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यश्रत का वर्णन है और इसके साथ ही नोआगमद्रव्यश्र त एवं सप्रभेद द्रव्यथ त का निरूपण समाप्त हुआ। विवेचन - यहाँ सूय का अर्थ सूत्र (सूत) भी होने की अपेक्षा उभयव्यतिरिक्तद्रव्यश्र त का वर्णन करने के साथ नोग्रागमद्रव्यश्र त एवं समग्र द्रव्यश्रु त के निरूपण की पूर्णता का संकेत किया है / कारण में कार्य का उपचार अंडज आदि नामों का हेतु है। अतएव जिस वस्तु से और जिस क्षेत्र विशेष में जो सूत्र बना, उसको उस नाम से कहा है। अंडज आदि की व्याख्या ___ अंडज के रूप में हंसगर्भ का उल्लेख किया गया है। हंस, पतंगा जातीय एक चतुरिन्द्रिय जीव है, जिसे कोशा भी कहते हैं / वह अपनी लार से एक थैली (कोशिका, कुशेरा) बनाकर उसी में बंद हो जाता है / उससे उत्पन्न सूत्र का नाम अंडज है। बोंड अर्थात् कपास का कोश और उस कपास से बने सूत को बोंडज कहते हैं / अथवा बोंड अर्थात् वमनीफल-रुई से या सेमल की रुई से बने सूत्र का नाम बोंडज है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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