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________________ [33 श्रुत निरूपण]. भावानुसार श्रुतपद को सीखेगा, किन्तु वर्तमान में सोख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीर-द्रव्यश्रुत है / शिष्य-इसका दृष्टान्त क्या है ? प्राचार्य (मधु और घी जिन घड़ों में भरा जाने वाला है, परन्तु अभी भरा नहीं है, उनके लिये) 'यह मधुघट है, यह घृतघट है' ऐसा कहा जाता है / विवेचन--यहाँ भविष्य में भावश्रत की कारण रूप पर्याय होने की योग्यता की अपेक्षा भव्यशरीरद्रव्यथ त का स्वरूप निर्दिष्ट किया है। ज्ञशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रत 39. से कि तं जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तं दव्वसुतं ? जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्तं पत्तयपोत्थयलिहियं / [39 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रु त का क्या स्वरूप है ? [39 उ.] अायुष्मन् ! ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में अथवा वस्त्रखंडों पर लिखित श्रु त ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत है। विवेचन-पूर्वोक्त ज्ञशरीर और भव्यशरीर द्रव्यश्रु त का लक्षण घटित न होने से उनसे भिन्न यह द्रव्यश्र त का लक्षण यहाँ निरूपित किया है। पत्रादि पर लिखित श्रु त भावथ त का कारण होने से उभयव्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत है। पत्र आदि पर लिखे श्र त में उपयोग रहितता होने से द्रव्यत्व है। आत्मा, देह और शब्द प्रागम के कारण हैं / इनका अभाव होने से अथवा पत्र आदि में लिखित श्रुत में अचेतनता होने के कारण नोग्रागमता है। ___'सुय' पद की संस्कृतछाया 'सूत्र' भी होती है, अत: शिष्य की बुद्धि की विशदता के लिये सुय के प्रकरण में प्रकारान्तर से सूत्र (सूत) की भी व्याख्या की जाती है 40, अहवा सुत्तं पंचविहं पण्णत्तं / तं जहा–अंडयं 1 बोंडयं 2 कोडयं 3 वालयं 4 वक्कयं 5 / [40] अथवा (ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य-) सूत्र पांच प्रकार का है—१. अंडज 2. बोंडज, 3. कीटज, 4. वालज, 5. बल्कज / 41. से किं तं अंडयं? अंडयं हंसगम्भादि / से तं अंडयं / [41 प्र.] भगवन् ! अंडज किसे कहते हैं ? [41 उ.] अायुष्मन् ! हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं / 42. से कि तंबोंडयं? बोंडयं फलिहमादि / से तं बोंडयं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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