________________ 32] [अनुयोगद्वारसूत्र जायकशरीरद्रव्यश्रुत 37. से किं तं जाणयसरीरदव्वसुतं ? जाणयसरीरदश्वसुतं सुतत्तिपदत्याहिकारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुतचावितचत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा सिद्धसिलाथलगयं वा, अहो ! णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिदिलैणं भावेणं सुए इ पयं आवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं / जहा को दिळंतो? अयं मधुकुभे आसी, अयं घयकुमे आसी / से तं जाणयसरीरदव्वसुतं / [37 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है ? [37 उ.] आयुष्मन् ! श्रु तपद के अर्थाधिकार के ज्ञाता के व्यपगत, च्युत, च्यावित, त्यक्त, जीवरहित शरीर को शय्यागत, संस्तारकगत अथवा सिद्धाशिला-तपोभूमिगत देखकर कोई कहे-- अहो ! इस शरीररूप परिणत पुद्गलसंघात द्वारा जिनोपदेशित भाव से 'श्रु त' इस पद की गुरु से वाचना ली थी, शिष्यों को सामान्य रूप से प्रज्ञापित और विशेष रूप से प्ररूपित, दर्शित, निर्दाशत, उपदर्शित किया था, उसका वह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक है। शिष्य-इसका दृष्टान्त ? प्राचार्य-(जैसे किसी घड़े में से मधु या घी निकाल लिये जाने के बाद कहा जाये कि) यह मधु का घड़ा है, यह घी का घड़ा है / इसी प्रकार निर्जीव शरीर भूतकालीन श्रुतपर्याय का आधाररूप होने से ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रु त कहलाता है। विवेचन--यहाँ ज्ञायकशरीरद्रव्यश्रुत का स्वरूप बतलाया है। सूत्रगत पदों की विस्तृत व्याख्या ज्ञशरीरद्रव्यावश्यक के अनुरूप जानना चाहिये। ___ जीवविषमुक्तता के आधार पर पत्थर आदि पुद्गलसंघातों में भी कदाचित् श्र तज्ञातृत्व, कर्तत्व एवं मुक्तत्व की संभावना की जाय तो उसका निराकरण करने के लिये सूत्र में शय्यागत आदि पदों की योजना की है। भव्यशरीरद्रव्यश्रत 38. से किं तं भवियसरीरदव्वसुतं ? भवियसरीरदव्वसुतं जे जीवे जोणीजम्मण-निक्खते इमेणं चेव सरीरसमुस्सरणं आवत्तएणं जिणीवइट्ठणं भावेणं सुए इ पयं सेकाले सिक्खिस्सति, ण ताव सिक्खति / जहा को दिळंतो ? अयं मधुकुभे भविस्सति, अयं घयकुभे भविस्सति / से तं भवियसरीरदब्वसुतं / [38 प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यश्रु त का क्या स्वरूप है ? [38 उ.] आयुष्मन् ! भव्यशरीरद्रव्यश्रत का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये-समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि में से निकला और प्राप्त शरीरसंघात द्वारा भविष्य में जिनोपदिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org