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________________ भुत निरूपण] [29 2. अवश्यकरणीय -- मुमुक्षु साधकों द्वारा नियमतः अनुष्ठेय होने के कारण अवश्यकरणीय है / 3. ध्रुवनिग्रह ---अनादि होने के कारण कर्मों को तथा कर्मों के फल जन्म - जरा-मरणादि रूप संसार को भी ध्रुव कहते हैं और आवश्यक कर्म एवं कर्मफलरूप संसार का निग्रह करने वाला होने के कारण ध्र वनिग्रह है। 4. विशोषि-कर्म से मलिन अात्मा की विशुद्धि का हेतु होने से आवश्यक विशोधि कहलाता 5. अध्ययनषट्कवर्ग-प्रावश्यकसूत्र में सामायिक आदि छह अध्ययन होने से यह अध्ययनषट्कवर्ग है। 6. न्याय--अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक उपाय होने से न्याय है / अथवा जीव और कर्म के अनादिकालीन सम्बन्ध के अपनयन का कारण होने से भी न्याय कहलाता है / 7. आराधना-आराध्य-मोक्षप्राप्ति का हेतु होने से आराधना है। 8. मार्ग-मार्ग का अर्थ है उपाय / अतः मोक्षपुर का प्रापक-उपाय होने से मार्ग है। इस प्रकार से सूत्रकार ने पहले जो 'पावस्सयं निक्खिविस्सामि' प्रतिज्ञा की थी, तदनुसार प्रायश्यक का न्यास करके वर्णन किये जाने से यह आवश्यकाधिकार समाप्त हुग्रा। श्रुत के भेद 30. से कि तं सुयं? सुयं चम्विहं पण्णत्तं / तं जहा-नामसुयं 1 ठवणासुयं 2 दव्वसुयं 3 भावसुयं 4 / [30 प्र.] भगवन् ! श्रुत का क्या स्वरूप है ? [30 उ.] आयुष्मन् ! श्रत चार प्रकार का है–१ नामश्रुत, 2 स्थापनाश्रुत, 3 द्रव्यश्रुत, 4 भाबश्रुत। विवेचन---सूत्रकार ने आवश्यक के अनन्तर 'सुयं निक्खविस्सामि' ---श्रुत का निक्षेप करूंगा, इस प्रतिज्ञानुसार निक्षेपविधि से श्रत के स्वरूप का वर्णन करना प्रारंभ किया है। नाम और स्थापना श्रुत 31. से कि तं नामसुषं? नामसुयं जस्स णं जीवस्स या अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण बा सुए इ नाम कोरति / से तं नामसुयं / [31 प्र] भगवन् ! नामश्रु त का क्या स्वरूप है ? [31 उ.] आयुष्मन् ! जिस किसी जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, उभय का अथवा उभयों का 'श्र त' ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नामश्रुत कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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