________________ 430 अनुयोगद्वारसूत्र [527 उ.] आयुष्मन् ! समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे-१. नामसमवतार, 2. स्थापनासमवतार, 3. द्रव्यसमवतार, 4. क्षेत्रसमवतार, 5. कालसमवतार और 6. भावसमवतार / विवेचन—सूत्र में भेदों द्वारा समवतार के स्वरूप का वर्णन प्रारम्भ किया है / समवतार-वस्तुओं के अपने में, पर में और उभय में अन्तर्भूत होने का विचार करने को समवतार कहते हैं। उसके नाम आदि के भेद से छह प्रकार हैं। आगे क्रम से उनका वर्णन करते हैं। नाम-स्थापना-द्रव्यसमवतार 528. से कि तं णामसमोयारे ? नाम-ठवणाओ पुव्ववणियाप्रो / [528 प्र.] भगवन् ! नाम (स्थापना) समवतार का स्वरूप क्या है ? [528 उ.] आयुष्मन् ! नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् (आवश्यक के वर्णन जैसा) यहाँ भी जानना चाहिये / 529. से कि तं दबसमोयारे ? दव्वसमोयारे दुविहे पण्णत्ते / तं०-प्रागमतो य णोप्रागमतो य / जाव से तं भवियसरीरदश्वसमोयारे। [529 प्र.] भगवन् ! द्रव्यसमवतार का क्या स्वरूप है ? [529 उ.] आयूष्मन ! द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है--१. आगमद्रव्यसमवतार, 2. नोग्रागमद्रव्यसमवतार / यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोग्रागमद्रव्यसमवतार के भेद ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर नोप्रागमद्रव्यसमवतार का स्वरूप पूर्ववत् द्रव्यावश्यक के प्रकरण में कथित भेदों के समान जानना चाहिये / विवेचन--यहाँ नाम, स्थापना समवतार का और द्रव्यसमवतार के दो भेदों का वर्णन किया है / स्पष्टीकरण इस प्रकार है-नामसमवतार और स्थापनासमवतार इन दोनों का वर्णन तो नाम-यावश्यक और स्थापना-प्रावश्यक के अनुरूप जानना चाहिए / परन्तु आवश्यक के स्थान पर समवतार पद का प्रयोग करना चाहिए / आगम और नोपागम को अपेक्षा द्रव्यसमवतार के दो भेद हैं। इनमें से नोआगमद्रव्यसमवतार ज्ञायकशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार का है / आगमद्रव्यसमवतार और नोआगम ज्ञायकशरोद्रव्यसमवतार एवं भव्यशरीरद्रव्यसमवतार का स्वरूप पूर्वोक्त द्रव्यावश्यक के वर्णन जैसा ही जानना चाहिए। शेष रहे ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार का वर्णन प्रकार है 530. [1] से कि तं जाणयसरीरभवियसरीरवारिते दम्वसमोयारे ? जाणयसरीरभवियसरीरवइ रित्ते बव्वसमोयारे तिबिहे पण्णत्ते / तं नहा—आयसमोयारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org