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________________ समवतार निरूपण [431 परसमोयारे तदुभयसमोयारे / सम्वदव्वा वि य णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुडे बदराणि, तदुभयसमोयारेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गोवा आयभावे य। [530-1 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार कितने प्रकार [530-1 उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार तीन प्रकार का है-यथा--१. प्रात्मसमवतार, 2. परसमवतार, 3. तदुभयसमवतार / आत्मसमवतार की अपेक्षा सभी द्रव्य आत्मभाव-अपने स्वरूप में ही रहते हैं, परसमवतारापेक्षया कुंड में बेर की तरह परभाव में रहते हैं तथा तदुभयसमवतार से (सभी द्रव्य) घर में स्तम्भ अथवा घट में ग्रीवा (गर्दन) की तरह परभाव तथा आत्मभाव-दोनों में रहते हैं। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में तद्व्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार का स्वरूप स्पष्ट किया है। प्रत्येक द्रव्य-पदार्थ कहाँ रहता है ? इसका विचार करने का प्राधार है निश्चय और व्यवहार नयदृष्टियों का गौण-मुख्य भाव / स्वस्वरूप के विचार में निश्चयनय की और परभाव का विचार करने में व्यवहारनय की मुख्यता है / इसलिये निश्चयनय से समस्त द्रव्यों के रहने का विचार करने पर उत्तर होता है कि सभी द्रव्य निजस्वरूप में रहते हैं। निजस्वरूप से भिन्न उनका कोई अस्तित्व नहीं है तथा परसमवतार से व्यवहारनय से विचार करने पर उत्तर होता है कि परभाव में भी रहते हैं / उभयरूपता युगपत् निश्चय-व्यवहारनयाश्रित है। अतः तदुभयसमवतार से विचार किये जाने पर आत्मसमवतार की अपेक्षा समस्त द्रव्य प्रात्मभाव में तथा परसमवतार की अपेक्षा परभाव में हैं। उदाहरणार्थ-स्तम्भ जैसे पर घर में भी रहता है और स्वस्वरूप में भी रहता है, ऐसा स्पष्ट दिखता है। यद्यपि परसमवतार के दृष्टान्त रूप में प्रस्तुत 'कुण्डे बदराणि' उदाहरण उभयसमवतार का है क्योंकि जिस प्रकार बेर अपने से पर-भिन्न कुण्ड में रहते हैं वैसे ही आत्मभाव में भी रहते हैं, इसलिए यह केवल परसमवतार नहीं है। किन्तु केवल परभाव में रहने का कोई उदाहरण सम्भव न होने से प्रात्मभाव की विवक्षा न करके नाममात्र के लिए यहाँ उसका पृथक् निर्देश किया है। वास्तव में समवतार दो हैं--आत्मसमवतार और उयभसमवतार / जिसको स्वयं सूत्रकार स्पष्ट करते हैं [2] प्रहवा जाणयसरीरभवियसरीरवइरिते दव्वसमोयारे दुविहे पण्णत्ते / तं जहाआयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य। चउसट्रिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं बत्तीसियाए समोयरति आयभावे य। बत्तीसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरति आयभावे य / सोलसिया आयसमोयारेणं प्रायभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं अट्ठभाइयाए समोयरति आयभावे य / अट्ठभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं चउभाइयाए समोयरति आयभावे य / चउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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