________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [405 सभी चौबीस जिन-तीर्थकर प्रधान-उत्तम नगर के (तोरणद्वार--फाटक के) कपाटों के समान वक्षस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित (मेघ के निर्घोष) के समान स्वर और श्रीवत्स (स्वस्तिक विशेष) से अंकित वक्षस्थल वाले होते हैं / 119 विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सद्रूप पदार्थ को सद्रूप पदार्थ से उपमित किया गया है। चौबीस जिन भगवान् सद्रूप हैं और नगर के कपाटों का भी अस्तित्व है। सद्रूप कपाटो से अरिहंत भगवन्तों के वक्षःस्थल को जो उपमित किया गया है, उसमें कपाट उपमान है और अरिहंत भगवन्तों का वक्षःस्थल उपमेय है। इसी प्रकार उनकी भुजाओं आदि के विषय में भी समझना चाहिये / तात्पर्य यह है कि यदि कोई, तीर्थकर के वक्षःस्थल आदि कैसे होते हैं ? यह जानना चाहता है तो वह नगर के मुख्य प्रवेशद्वार के कपाट आदि उपमानों के द्वारा उपमेयभूत अरिहंतों के वक्षःस्थल आदि को जान लेता है तथा वक्षःस्थल आदि तीर्थकर के अविनाभावी होने से तीर्थकर भी उपमित हो जाते हैं / सद-प्रसद्रूप औपम्यसंख्या [3] संतयं असंतएणं उवमिज्जइ जहा--संताई नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणूस-देवाणं आउयाइं असंतएहि पलिओवम-सागरोवमेहि उवमिज्जंति / [492-3] विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना / जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विद्यमान प्रायु के प्रमाण को अविद्यमान पल्योपम और सागरोपम द्वारा बतलाना / विवेचन-इस कथन में नारक आदि जीवों का आयुष्य सद्रूप है और पल्योपम-सागरोपम असद्रूप कल्पना द्वारा परिकल्पित होने से असद्प हैं / किन्तु इनके द्वारा ही उनकी आयु बताई जा सकती है। इसीलिये इसको सद्रूप उपमेय और असद्रूप उपमान के रूप में प्रस्तुत किया है। नारकादिकों की आयु उपमेय है और पल्योपम एवं सागरोपम उपमान हैं। असत्-सत् प्रौपम्यसंख्या [4] असंतयं संतएणं उवमिन्जति जहा--- परिजूरियपेरंतं चलंतबेट पडत निच्छोरं / पत्तं वसणप्पत्तं कालप्पत्तं भणइ गाहं // 120 // जह तुम्भे तह अम्हे, तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे / अप्पाहेति पडतं पंडयपत्तं किसलयाणं // 121 // णवि अस्थि णवि य होही उल्लायो किसल-पंडुपत्ताणं / / उवमा खलु एस कया भवियजणविबोहणट्ठाए / / 122 // [492-4] अविद्यमान-असद्वस्तु को विद्यमान सद्वस्तु से उपमित करने को असत्-सत् औपम्यसंख्या कहते हैं / वह इस प्रकार है सर्व प्रकार से जीर्ण, डंठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और (वृक्ष से वियोग हो जाने से) दुःखित ऐसे पत्ते ने वसंत समय प्राप्त नवीन पत्ते (किसलय-कोपल) से कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org