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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण) [381 4. समस्त रूपी और अरूपी पदार्थों को सामान्य रूप से जानने वाले परिपूर्ण दर्शन को केवलदर्शन कहते हैं। यह केवलदर्शनावरणकर्म के क्षय से आविर्भूत लब्धि से संपन्न जीव को मूर्त और अमूर्त समस्त द्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायों में होता है। अवधिदर्शन की तरह मनःपर्यायदर्शन को पृथक् न मानने का कारण यह है कि जिस प्रकार मनःपर्यायज्ञानी भत और भविष्य को जानता तो है पर देखता नहीं तथा वर्तमान में भी मन के विषय को विशेषाकार से ही जानता है / अतः सामान्यावलोकनपूर्वक प्रवृत्ति न होने से मनःपर्यायदर्शन नहीं माना है / यह दर्शनगुणप्रमाण की वक्तव्यता का सारांश है। चारित्रगुरणप्रमाण 472. से कि तं चरित्तगुणप्पमाणे ? चरित्तगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे छेदोक्ट्ठावणियचरित्तगुणप्पमाणे परिहारविसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे सुहमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे। सामाइयचरित्तगुणपमाणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-इत्तरिए य आवकहिए य / छेदोवट्ठावणियचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सातियारे व निरतियारे य।। परिहार विसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-णिविसमाणए य णिविटुकायिए य। सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–संकिलिस्समाणयं च विसुज्झमाणयं च। अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुबिहे पणत्ते / तं जहा–पडिवाई य अपडिवाई य-छउमत्थे य केवलिए य / से तं चरित्तगुणप्पमाणे / से तं जीवगुणप्पमाणे / से तं गुणप्पमाणे / [472 प्र.} भगवन् ! चारित्रगुणप्रमाण किसे कहते हैं ? [472 उ.] अायुग्मन् ! चरित्रगुणप्रमाण के पांच भेद हैं। वे इस प्रकार-१ सामायिकचारित्रगुणप्रमाण, 2 छेदोपस्थापनीयचारित्रगुणप्रमाण, 3 परिहारविशुद्धिचारित्रगुणप्रमाण, 4 सूक्ष्मसंपरायचारित्रगुणप्रमाण, 5 यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण / इनमें से---- सामायिकचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है-१ इत्वरिक और 2 यावत्कथिक / छेदोपस्थापनीय चारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं, यथा-१ सातिचार और 2 निरतिकार / परिहारविशुद्धिकचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का है-निविश्यमानक, 2 निविष्ट कायिक / सूक्ष्मसंपरायचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है-१ संक्लिश्यमानक और 2 विशुद्धयमानक / __ यथाख्यात चारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं। वे इस प्रकार-१ प्रतिपाती और 2 अप्रतिपाती। अथवा 1 छाद्मस्थिक और 2 कैलिक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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