________________ प्रमाणाधिकार निरूयण] [373 [460 प्र.] भगवन् ! किंचित्साधोपनीत किसे कहते हैं ? [460 उ.] आयुष्मन् ! जैसा मंदर (मेरु) पर्वत है वैसा ही सर्षप (सरसों) है और जैसा सर्षप है वैसा ही मन्दर है। जैसा समुद्र है, उसी प्रकार गोष्पद-(जल से भरा गाय के खुर का निशान) है और जैसा गोष्पद है, वैसा ही समुद्र है तथा जैसा आदित्य--सूर्य है, वैसा खद्योत-जुगुन है / जैसा खद्योत है, वैसा आदित्य है। जैसा चन्द्रमा है, वैसा कुंद पुष्प है, और जैसा कुंद है, बेसा चन्द्रमा है। यह किंचित्साधोपनीत है। 461. से कि तं पायसाहम्मे ? पायसाहम्मे जहा गो तहा गवयो, जहा गवयो तहा गो। से तं पायसाहम्मे / [461 प्र.भगवन् ! प्रायःसाधोपनीत किसे कहते हैं ? [461 उ.] आयुष्मन् ! जैसी गाय है वैसा गवय (रोझ) होना है और जैसा गत्रय है, वैसी गाय है / यह प्रायःसाधोपनीत है / 462. से कि तं सन्धसाहम्मे ? सव्वसाहम्मे ओवम्म पत्थि, तहा वि तेणेव तस्स प्रोवम्मं कीरइ, जहा–अरहंतेहिं अरहंतसरिसं कयं, एवं चक्कट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं, साहुणा साहुसरिसं कथं / से तं सव्वसाहम्मे / से तं साहम्मोबणीए / [462 प्र.] सर्वसाधोपनीत किसे कहते हैं ? [462 उ.] अायुष्मन् ! सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती, तथापि उसी से उसको उपमित किया जाता है। वह इस प्रकार-अरिहंत ने अरिहंत के सदृश, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती के जैसा, बलदेव ने बलदेव के सदृश, वासुदेव ने वासुदेव के समान, साधु ने साधु सदश किया / यही सर्वसाधोपनीत thor यह साधोपनीत उपमानप्रमाण है। विवेचन---प्रस्तुत में उपमानप्रमाण के प्रथम भेद साधोपनीत के अवान्तर भेदों का वर्णन किया है। दो भिन्न पदार्थों में आंशिक गुण-धर्मों की समानता देखकर एक को दूसरे की उपमा देना साधोपनीत उपमान है। यह उपमान एकदेशिक भी हो सकती है-कतिपय वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की अपेक्षा भी और कुछ उससे भी अधिक एक जैसी रूप तथा अत्यल्प भिन्नता वाली हो सकती है और कुछ ऐसी भी जो सर्वात्मना सदृश हो। इसी अपेक्षा साधोपनीत के तीन भेद होते हैं। किंचित्साधोपनीत में कुछ-कुछ समानता को लेकर उपमा दी जाती है। इसके लिए सूत्रकार ने जो उदाहरण दिये हैं उनमें सर्षप और मेरुपर्वत के बीच प्राकार-संस्थान आदि की अपेक्षा भेद हैं, तथापि दोनों मूर्तिमान हैं और रूप-रस-गंध-स्पर्शवान होने से पौद्गलिक हैं / इसी प्रकार से सूर्य और खद्योत में मात्र प्रकाशकत्व की अपेक्षा, समुद्र एवं गोष्पद में जलवत्ता तथा चन्द्र तथा कुंद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org