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________________ 372] अनुयोगद्वारसूत्र 10 (ख) प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविभक्ति, हेतु, हेतुविभक्ति, विपक्ष, विषक्ष-प्रतिषेध, दृष्टान्त, आशंका, आशंकाप्रतिषेध, निगमन / लेकिन अनुमानप्रयोग में कितने अवयव होने चाहिये इस विषय में जैनदर्शन का कोई प्राग्रह नहीं है / सर्वत्र यह स्वीकार किया है कि जितने अवयवों से जिज्ञासु को तद्विषयक ज्ञान हो जाये उतने ही अवयवों का प्रयोग करना चाहिये। ___इस प्रकार से भावप्रमाण के दूसरे भेद अनुमान की चर्चा करने के बाद अब तीसरे भेद उपमान का वर्णन करते हैं / उपमानप्रमाण 458. से कि तं ओवम्मे ? ओवम्मे दुबिहे पण्णत्ते / तं जहा-साहम्मोवणीते य वेहम्मोवणीते य / [458 प्र.] भगवन् ! उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है ? [458 उ.] उपमान प्रमाण दो प्रकार का कहा है, जैसे -माधोपनीत और वैधोपनीत / विवेचन यहाँ भेदमुखेन उपमान प्रमाण का वर्णन किया गया है। सदृशता के आधार पर वस्तु को ग्रहण करना उपमान है। उपमा दो प्रकार से दी जा सकती है--समान-सदृश गुणधर्म वाले तुल्य पदार्थ को देखकर अथवा विसदश गुणधर्म वाले पदार्थ को देखकर / इसीलिये उपमान प्रमाण के दो भेद बताये 1. साधोपनीत और 2. वैधोपनीत / समानता के आधार से जो उपमा दी जाती है उसे साधोपनीत कहते हैं तथा दो अथवा अधिक पदार्थों में जिसके द्वारा विलक्षणता बतलाई जाती हैं उसे वैधोपनीत कहते हैं। यह साधर्म्य और वैधर्म्य किंचित, प्राय: और सर्वत: इन प्रकारों द्वारा व्यक्त होता है। इसी अपेक्षा से इनके तीन-तीन अवान्तर भेद हो जाते हैं, जिनका स्पष्टीकरण करते हैं--- साधोपनीत उपमान 456. से कि तं साहम्मोवणीए ? साहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते / तं० ----किचिसाहम्मे पायसाहम्मे सवसाहम्मे य / [459 प्र. भगवन् ! साधोपनीत-उपमान किसे कहते हैं / [459 उ.| आयुष्मन् ! जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाये उसे साधोपनीत कहते हैं। उसके तीन प्रकार हैं-१. किंचित्साधोपनीत, 2. प्रायःसाधम्योपनीत और 3. सर्वसाधोपनीत / 460. से कि तं किंचिसाहम्मे ? किचिसाहम्मे जहा मंदरो तहा सरिसवो जहा सरिसवो तहा मंदरो, जहा समुद्दो तहा गोप्पयं जहा गोप्पयं तहा समुद्दो, जहा प्राइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुंदो जहा कुदो तहा चंदो / से तं किंचिसाहम्मे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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