________________ 370 [अनुयोगबारसूत्र 455. से किं तं तीतकालगहणं ? नित्तणाई बणाई अनिष्फण्णसस्सं च मेतिणि सुक्काणि य कुड-सर-गदि-दह-तलागाई पासित्ता तेणं साहिज्जति जहा--कुवुट्ठी आसी / से तं तीतकालगहणं / [455 प्र.] भगवन् ! अतीतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [455 उ.] आयुष्मन् ! तृणरहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, द्रह और तालाबों को देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ कुवृष्टि हुई है-~-वृष्टि हुई नहीं है, यह अतीतकालग्रहण है। 456. से कि तं पडुप्पण्णकालगहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं साहुं गोयरगमयं भिक्खं अलभमाणं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहादुभिक्खं वइ / से तं पडुप्पण्णकालगहणं / [456 प्र.] भगवन् ! प्रत्युत्पन्न-वर्तमानकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [456 उ.] आयुष्मन् ! गोचरी गये हुए साधु को भिक्षा नहीं मिलते देखकर अनुमान किया जाना कि यहाँ दुर्भिक्ष है / यह प्रत्युत्पनकालग्रहण-अनुमान है। 457. से कि तं प्रणागयकालगहणं? प्रणागयकालगहणं अग्गेयं वा वायव्वं वा अण्णयरं वा अप्पसत्थं उपायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा-कुट्ठी भविस्सइ / से तं अणागतकालगहणं / से तं विसेसदिट्ठ। से तं दिट्ठसाहम्मवं / से तं अणुमाणे / [457 प्र.] भगवन् ! अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [457 उ.] आयुष्मन् ! (जैसे)-आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी / यह अनागतकालग्रहण-अनुमान है। यही विशेषदृष्ट है / यही दृष्टसाधर्म्यवत् है। इस प्रकार से अनुमानप्रमाण का विवेचन जानना चाहिये। विवेचन-जैसे पूर्व में अनुकूलता की अपेक्षा विशेषदृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान के कालविषयक तीन उदाहरण दिये हैं, उसी प्रकार यहाँ प्रतिकूलग्रहण संबंधी तीन उदाहरणों का उल्लेख किया है / विपरीत हेतुओं-निमित्तों को देखकर तत्तत्कालभावी ग्राह्य वस्तुओं की सिद्धि का भी अनुमान किया जाता है / जैसे 1. तृणरहित वनों, सूखे खेतों और सूखे सरोवरों आदि को देखकर यह अनुमान किया जाता है कि इस देश में ठीक वर्षा नहीं हुई / यह अतीतकालग्रहण का अनुमान है। 2. वर्तमानकाल का ग्राहक अनुमान इस प्रकार से जानना चाहिए यहाँ दुभिक्ष है, क्योंकि साधुओं को भिक्षा नहीं मिलती। इसमें भिक्षुत्रों को भिक्षा प्राप्त नहीं होते देखकर अनुमान किया कि यहाँ दुर्भिक्ष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org