________________ 36) अनुयोगदारसूत्र उस सामान्यधर्म का तथा अनेकों में दष्ट सामान्य से तदनुरूप एक में सामान्य का निर्णय किया जाता है। विशेषदृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान में भी यद्यपि सामान्य अंश तो अनुस्यूत रहता ही है, किन्तु इतनी विशेषता है कि पूर्व-दर्शन से प्राप्त संस्कारों से वर्तमान में उपलब्ध उसी पदार्थ को देखकर अनुमान कर लिया जाता है कि यह वही है जिसे मैंने पूर्व में देखा था / अब अनुकूल विषय की अपेक्षा तीन प्रकारों का वर्णन करते हैं४५१. से कितं तोतकालगहणं ? तोतकालगहणं उत्तिणाणि वणाणि निष्फण्णसस्सं वा मेदिणि पुण्णाणि य कुड-सर-दिशोहिया-तलागाई पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा--सुवट्ठी आसि / से तं तीतकालगहणं / [451 प्र. भगवन् ! अतीतकालग्रहण अनुमान का क्या स्वरूप है ? [451 उ.! आयुष्मन् ! बनों में ऊगी हुई घास, धान्यों से परिपूर्ण पृथ्वी, कुंड, सरोवर, नदी और बड़े-बड़े तालाबों को जल से संपूरित देखकर यह अनुमान करना कि यहाँ अच्छी वृष्टि हुई है। यह अतीतकालग्रहणसाधर्म्यवन्-अनुमान है। 452. से कि तं पडुप्पण्णकालगहणं ? पडुप्पण्णकालगहणं साहुं गोयरग्गगयं विच्छड्डियपउरभत्त-पाणं पासित्ता तेणं साहिज्जा जहा–मुभिक्खे वट्टइ / से तं पडुप्पण्णकालगहणं / |452 प्र. भगवन् ! प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) कालग्रहण अनुमान का क्या स्वरूप है ? [452 उ.] आयुष्मन् ! गोचरी गये हुए साधु को गृहस्थों से विशेष प्रचुर पाहार-पानी प्राप्त करते हुए देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ सुभिक्ष है। यह प्रत्युत्पन्न कालग्रहण अनुमान है। 453. से कि तं अणागयकालगहणं ? अणागयकालगहणं अब्भस्स निम्मलत्तं कसिणा य गिरी सविज्जुया मेहा। थणियं वाउभामो संझा रत्ता य णिद्धा य // 118 // वारुणं वा माहिदं वा अण्णयरं वा पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ जहा --सुवुट्ठी भविस्सइ / से तं अणागतकालगहणं / [453 प्र.] भगवन् ! अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? 453 उ.! आयुष्मन् ! आकाश की निर्मलता, पर्वतों का काला दिखाई देना, विजली सहित मेघों की गर्जना, अनुकूल पवन और संध्या की गाढ लालिमा / 118 वारुण-आर्द्रा आदि नक्षत्रों में एवं माहेन्द्र-रोहिणी प्रादि नक्षत्रों में होने वाले अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org