________________ प्रमाणाधिकार निरूपण विवेचन--सूत्र में जीवगुणप्रमाण के प्रथम भेद ज्ञानगुणप्रमाण के चार भेदों का नामोल्लेख किया है / जिनका अब विस्तार से वर्णन करते हैं। प्रत्यक्षप्रमारनिरूपण 437. से कि तं पच्चक्खे ? पच्चक्खे दुबिहे पण्णत्ते / तं जहा-इंदियपच्चरखे य गोइंदियपच्चक्खे य / 1437 प्र.| भगवन् ! प्रत्यक्ष का क्या स्वरूप है ? |437 उ.) आयुष्मन् ! प्रत्यक्ष के दो भेद हैं / यथा—इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष / 438. से कि तं इंदियपच्चक्खे ? इंदियपच्चक्खे पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-सोइंदियपच्चक्खे चक्खुरिदियपच्चक्खे घाणिदियपच्चक्खे जिभिदियपच्चक्खे फासिदियपच्चक्खे / से तं इंदियपच्चक्खे / 1.438 प्र.| भगवन् ! इन्द्रियप्रत्यक्ष किसे कहते हैं ? [438 उ.! प्रायुष्मन् ! इन्द्रियप्रत्यक्ष पांच प्रकार का कहा है। यथा--१. श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, 2. चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, 3. घाणेन्द्रियप्रत्यक्ष, 4. जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्ष, 5. स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष / इस प्रकार यह इन्द्रियप्रत्यश्न है। 439. से कि तं णोइंदियपच्चरखे? गोइंदियपच्चक्खे तिविहे पं० / तं०--ओहिणाणपच्चक्खे मणपज्जवणाणपच्चक्खे केवलणाण. पच्चक्खे / से तं णोइंदियपच्चक्खे / से तं पच्चक्खे / [439 प्र. भगवन् ! नोइन्द्रियप्रत्यक्ष का क्या स्वरूप है ? |439 उ.| आयुष्मन् ! नोइन्द्रियप्रत्यक्ष तीन प्रकार का कहा गया है--१. अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, 2. मन:पर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, 3. केवलज्ञान प्रत्यक्ष / यही प्रत्यक्ष का स्वरूप है। विवेचन उक्त प्रश्नोत्तरों में भेद सहित प्रत्यक्षप्रमाण का स्वरूप बतलाया है। प्रत्यक्ष शब्द में प्रति+अक्ष ऐसे दो शब्द हैं / अक्ष शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- अक्ष्णोति ज्ञानात्मना व्याप्नोति जानातीत्यक्ष प्रात्मा / ' अर्थात् अक्ष जीव—प्रात्मा को कहते हैं, क्योंकि जीव ज्ञान रूप से समस्त पदार्थों को व्याप्त करता है---जानता है / जो ज्ञान साक्षात् प्रात्मा से उत्पन्न हो, जिसमें इन्द्रियादि किसी माध्यम की अपेक्षा न हो, वह प्रत्यक्ष कहलाता है। यद्यपि 'अक्ष-अक्ष प्रतिगतम्' ऐसी भी व्युत्पत्ति प्रत्यक्ष शब्द की हो सकती है, लेकिन वह युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसी व्युत्पत्ति करने में अव्ययीभाव समास होता है और अव्ययीभाव समास से बना शब्द सदा नपंसलिंग में होता है। तब 'प्रत्यक्षो बोधः, प्रत्यक्षा बुद्धि: प्रत्यक्षं ज्ञानम्' इस प्रकार से त्रिलिंगता प्रत्यक्ष शब्द में नहीं पा सकेगा। अत: प्रत्यक्ष शब्द की पूर्वोक्त व्युत्पत्ति ही निर्दोष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org