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________________ 360] - [अनुयोगद्वारसूत्रः गुणों में होती है, इसलिये अभेदोपचार से गुणों को भी प्रमाण मान लिया जाता है। करणसाधन पक्ष में गुणों के द्वारा द्रव्य जाना जाता है, इसलिये गुण प्रमाणभूत हो जाते हैं। कर्मसाधन पक्ष में गुण गुणरूप से जाने जाते हैं, इसलिये गुण प्रमाण रूप हैं। यहाँ जिन गुणों को प्रमाण रूप से प्रस्तुत किया है, वे मूर्त अजीव द्रव्य पुद्गल के हैं। ये सभी पुद्गलद्रव्य के असाधारण स्वरूप के बोधक हैं / अत्य द्रव्यों में नहीं होते हैं / जिस द्रव्य में रूप होता है, उसी में संस्थान-ग्राकार होता है। प्राकार के माध्यम से बह दृश्य होता है। इसीलिये परिमंडल आदि संस्थानों को भी गुण प्रमाण के रूप में माना है / संस्थानों के नामोल्लेख में 'यावत्' पद से परिमंडल और आयत संस्थान के साथ वृत्त, यस और चतुरस्र संस्थान को ग्रहण किया है / बलय (चूड़ी) के आकार के संस्थान को परिमंडलसंस्थान कहते हैं। लोहगोलक (गोली) के आकार को वृत्तसंस्थान, सिंघाड़े जैसे आकार को त्र्यस (त्रिकोण) संस्थान, समचौरस (चौकौर) आकार को चतुरस्रसंस्थान और लम्बे आकार को आयतसंस्थान कहते हैं। स्थानांगसूत्र में संस्थान सात कहे गए हैं---१. दीर्घ, 2. ह्रस्व, 3. वृत्त (गेंद के समान गोल), 4. त्रिकोण, 5. चतुष्कोण, 6. प्रथल-विस्तीर्ण और 7. परिमंडल-वलय की भांति गोल / ' ये सभी वर्णादि गुण अजीव पदार्थ के हैं / इसलिये इनको अजीवगुणप्रमाण में ग्रहण किया है। जीवगुणप्रमाणनिरूपण . . 435. से कि तं जीवगुणप्पमाणे ? जीवगुणप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-णाणगुणप्पमाणे दंसणगुणप्पमाणे चरित्तगुणप्पमाणे य। [435 प्र. भगवन् ! जीवगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [435 उ.) आयुष्मन् ! जीवगुण प्रमाण तीन प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। वह इस प्रकार-ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण। विवेचन यहाँ जीव के मूलभूत गुणों का उल्लेख करके जीवगुणप्रमाण के तीन भेद बताये 436. से किं तं गाणगुणप्पमाणे ? णाणगुणप्पमाणे चउठिवहे यण्णत्ते / तं०-पच्चक्खे अणुमाणे प्रोवम्मे आगमे / |436 प्र. भगवन् ! ज्ञानगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [436 उ.] अायुष्मन् ! ज्ञानगुणप्रमाण चार प्रकार का कहा गया है--१. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, 3. उपमान और 4 पागम / 1. स्थानांगसूत्र, स्थान 7 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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