________________ सुत्रालापक निक्षेप वह है जिसमें 'करेमि भंते सामाइयं' आदि पदों का नामादि भेदपूर्वक व्याख्यान किया जाता है / इसमें सून का शुद्ध और स्पष्ट रूप से उच्चारण करने की सूचना दी है / अनुयोगद्वार का तृतीय द्वार अनुगम है / उत्तराध्ययनणि में अनुगम की व्याख्या इस प्रकार की गई है-जिसके द्वारा सूत्र का अनुसरण अथवा सूत्र के अर्थ का स्पष्टीकरण किया जाता है, वह अनुगम/व्याख्या है। अनुयोगद्वारणि में अनुगम की व्याख्या इस प्रकार मिलती है-अर्थ से सूत्र अणु अर्थात् लघु होता है, उसके अनुरूप गमन करना अनुगम है / 60 दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि सूत्र और अर्थ के अनुकूल गमन करना अनुगम है / 11 अनुयोगद्वार मलधारीय टीका में अनुगम को परिभाषा इस रूप में मिलती है--सूत्र पढ़ने के पश्चात् न करना अनुगम है। जिसके द्वारा सूत्रानुसारी ज्ञान होता है, वह अनुगम है।५२ अनुगम के मूत्रानुगम और निर्युक्त्यनुगम, ये दो भेद हैं / निर्युक्त्यनुगम के तीन भेद हैं- निक्षेपनियुक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम और सूत्रस्पशिकनियुक्त्यनुगम / इसमें निक्षेपनियुक्त्यनुगम का विवेचन किया जा चुका है। उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम के उद्देश, निर्देश, निर्गम आदि छव्वीस भेद बताये हैं / सूत्रस्पशिकनियुक्त्यनुगम का अर्थ है-अस्खलित, अमिलित, अन्य सूत्रों के पाठों से असंयुक्त, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ--अोष्ठ से विमुक्त तथा गुरुमुख से ग्रहण किये हुए उच्चारण से युक्त सूत्रों के पदों का स्व सिद्धान्त के अनुरूप विवेचन करना। अनुयोगद्वार का चौथा द्वार नय है / नय जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। जो वस्तु का बोध कराते हैं वे नय हैं / 3 वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। बस्तु के उन सम्पूर्ण धर्मों का यथार्थ और प्रत्यक्ष ज्ञान केवल सर्वज्ञसर्वदर्शी को ही हो सकता है। पर सामान्य मानव में बह सामर्थ्य नहीं है। सामान्य मानव एक समय में कुछ का ही ज्ञान कर पाता है / यही कारण है कि उसका ज्ञान प्रांशिक है, प्रांशिक ज्ञान को नय कहते हैं। यह स्मरण रखना होगा, प्रमाण और नय ये दोनों ज्ञानात्मक हैं। किन्तु दोनों में अन्तर यही है कि प्रमाण सम्पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराता है तो नय वस्तु के एक अंश का ज्ञान कराता है। प्रमाण को सकलादेश और नय को विकलादेश कहा है। सकलादेश में वस्तु के समस्त धर्मों की विवक्षा होती है पर विकलादेश में एक धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों की विवक्षा नहीं होती। विकलादेश को सम्यक् इसीलिए माना जाता है कि वह जिस धर्म की विवक्षा करता है उसके अतिरिक्त अन्य धर्मों का प्रतिषेध नहीं करता किन्तु उन धर्मों की उपेक्षा करता है। वक्ता के अभिप्राय की दृष्टि से नय का लक्षण इस प्रकार है-बिरोधी धर्मों का निषेध न करते हुए वस्तु के एक अंश या धर्म को ग्रहण करने वाला ज्ञाता का अभिप्राय नय है / 4 दूसरे शब्दों में अनेकान्तात्मक वस्तु में विरोध के बिना हेतु की मुख्यता से साध्य विशेष की यथार्थता को प्राप्त कराने में समर्थ शब्दप्रयोग नय है।६५ जितने वचन 59. अनुगम्यतेऽनेनास्मिश्चेति अनुगमः। -उत्तराध्ययनपूणि, पृष्ठ 9 60. प्रत्थातो सुत्तं अणु, तस्स अणुरूवग मणत्तानो अनुगमो। –अनुयोगद्वारचूर्णि, पृष्ठ 18 61. सूत्रार्थानुकूलगमनं वा अनुगमः। ----अनुयोगद्वारचूणि, पृष्ठ 23 62. सूत्रपठनादनु पाचाद् गमनं-व्याख्यानमनुगमः / अनुसूत्रमों गम्यते-ज्ञायते' अनेनेत्यनुगमः // --अनुयोगद्वार मल्लधारी टीका, पन्ना 54 63. नयंति गमयंति प्राप्नुवंति वस्तु ये ते नयाः। -उत्तराध्ययनचूणि, पृष्ठ 234 64. प्रमेयकमलमार्तण्ड / --पृष्ठ 676 65. सर्वार्थ सिद्धि / --श३३ [ 38 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org