________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [2] नेरइयाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पन्नता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-बदल्लया प मुक्केल्लया प / तत्थ गंजे ते बद्धेल्लया ते गं असंखेज्जा असंखेज्जाहि उस्सप्पिणी-ओसप्पिणोहि अवहीरति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेडोओ पयरस्स असंखेज्जहभागो, तासि गं सेढोणं विक्खंभसूयी अंगुलपढमवग्गमूलं वितियवागमूलपडप्पण्णं अहब णं अंगुल बितियवग्गमूलधणपमाणमेत्ताओ सेढीओ। तत्थ गंजे ते मुक्केल्लया ते गं जहा ओहिया ओरालियसरीरातहा माणियग्या / [418-2 प्र.] भगवन् ! नारक जीवों के वैक्रियशरीर कितने कहे गये हैं ? [418-2 उ.] गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं-बद्ध और मुक्त / उनमें से बद्ध वैक्रियशरीर तो असंख्यात हैं जो कालत: असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों के समयप्रमाण हैं। क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणीप्रमाण है। वे श्रेणियां प्रतर का असंख्यात भाग हैं। उन श्रेणियों की विष्कम्भ, सूची' अंगुल के प्रथम वर्गमूल को दूसरे वर्गमूल से गुणित करने पर निष्पन्न राशि जितनी होती है / अथवा अंगुल के द्वितीय वर्गमूल के धनप्रमाण श्रेणियों जितनी है। मुक्त क्रियशरीर सामान्य से मुक्त औदारिकशरीरों के बराबर जानना चाहिये। [3] गैरइयाणं भंते ! केवइया पाहारगसरीरा पण्णता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–बबेल्लया य मुक्केल्लया य / तत्थ णं जे ते बदल्लया ते ण नस्थि / तत्व णं जे ते मुक्केल्लया ते नहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियन्वा / [418-3 प्र.] भगवन् ! नारक जीवों के कितने आहारकशरीर कहे गये हैं ? [418-3 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-बद्ध और मुक्त / बद्ध पाहारकशरीर तो उनके नहीं होते हैं तथा मुक्त जितने सामान्य औदारिक शरीर कहे गये हैं, उतने जानना चाहिये। [4] तेयग-कम्मगससोरा जहा एतेसिं चेव वेउब्वियसरीरा तहा भाणियव्वा / [418-4] तैजस और कार्मण शरीरों के लिये जैसा इनके वैक्रियशरीरों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार समझना चाहिये / विवेचन-उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में नारक जीवों में बद्ध और मुक्त औदारिक आदि पंच शरीरों के परिमाण की प्ररूपणा की गई है। वैक्रियशरीर वाले होने से नारकों में बद्ध औदारिकशरीर नहीं होते हैं / मुक्त औदारिकशरीर सामान्य से बताये गये मुक्त औदारिकशरीरों के समान अनन्त हैं / क्योंकि पूर्वप्रज्ञापननय की अपेक्षा नारक जीवों के औदारिकशरीर होते हैं। नारक जीव जब पूर्व भवों में तिर्यच या मनुष्य पर्याय में था, तब वहाँ प्रौदारिकशरीर था और अब उसे छोड़कर नरकपर्याय में आया है। इसीलिये नारक जीवों के मुक्त प्रौदारिकशरीर सामान्यतः अनन्त कहे हैं। नैरयिक जीवों का भवस्थ शरीर वैक्रिय होता है / अतएव नरयिकों के बद्ध वैक्रियशरीर उतने 1. विस्तार की अपेक्षा--लम्बाई को लिये हुई एक प्रादेशिको श्रेणी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org