________________ अनुयोगद्वारसूत्र का अधिक भाग उपक्रम की चर्चा ने रोक रखा है। शेष तीन निक्षेप संक्षेप में हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना ऐसी है कि ज्ञातव्य विषयों का प्रतिपादन उपक्रम में ही कर दिया है जिससे बाद के विषयों को समझना अत्यन्त सरल हो जाता है। उपक्रम में जिन विषयों की चर्चा की गई है उन सभी विषयों पर हम तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करना चाहते थे जिससे कि प्रबुद्ध पाठकों को यह परिज्ञात हो सके कि प्रागमसाहित्य में अन्य स्थलों पर इन विषयों को चर्चा किस रूप में है। और परवर्ती साहित्य में इन विषयों का विकास किस रूप में हुआ है। पर समयाभाव के कारण हम चाहते हुए भी यहाँ नहीं कर पा रहे हैं। 'प्रमाण एक अध्ययन' शीर्षक लेख में हमने प्रमाण की चर्चा विस्तार से की है, अत: जिज्ञासु पाठक उस ग्रन्थ का अवलोकन कर सकते हैं / 50 निक्षेप—यह अनुयोगद्वार का दूसरा द्वार है। निक्षेप जैनदर्शन का एक पारिभाषिक और लाक्षणिक शब्द है। पदार्थबोध के लिए निक्षेप का परिज्ञान बहुत ही आवश्यक है। निक्षेप की अनेक व्याख्याएँ विभिन्न ग्रन्थों में मिलती हैं। जीतकल्पभाष्य में प्राचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने लिखा है "नि' शब्द के तीन अर्थ है..—ग्रहण, आदान और प्राधिक्य / 'क्षेप' का अर्थ है--प्रेरित करना। जिस वचनपद्धति में नि/अधिक क्षेप/विकल्प है, वह निक्षेप है।५१ सूत्रकृतांगचूणि जिनदासगणिमहत्तर ने निक्षेप की परिभाषा इस प्रकार की है.--जिसका क्षेप/स्थापन नियत और निश्चित होता है, वह निक्षेप है / 52 वहद् द्रव्यसंग्रह में आचार्य नेमिचन्द ने लिखा है, युक्तिमार्ग में प्रयोजनवशात्, जो वस्तु को नाम मादि चार भेदों में क्षेपण स्थापन करे वह निक्षेप है।५३ नयचक्र में प्राचार्य मल्लिसेन मल्लधारी ने निक्षेप की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है- वस्तु का नाम आदि में क्षेप करने या धरोहर रखना निक्षेप है।५४ षटखण्डागम की धवला टीका में प्राचार्य वीरसेन ने निक्षेप की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है—संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय में अस्थित वस्तु को उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है, वह निक्षेप है।५५ दुसरे शब्दों में यू कह सकते हैं, जो अनिर्णीत वस्तु का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव द्वारा निर्णय कराये वह निक्षेप है। इसे यों भी कह सकते हैं—अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का निरूपण करना निक्षेप है। 50. जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृष्ठ 376 से 405 / --लेखक देवेन्द्र मुनि शास्त्री 51. गहणं पादाण ति होति णिसद्दो तहाहियथम्मि / खिव पेरणे व भणितो अहिउक्खेवो तु णिक्खेवो / / ___-जीत कल्पभाध्य 809 (बवलचन्द्र केशवलाल मोदी, अहमदावाद) 52. निक्षिप्यतेऽनेनेति निक्षेपः / नियतो निश्चितो क्षेपो निक्षेपः / / —सूत्रकृतांगचूणि 1, पृष्ठ 17 53. जुत्ती सुजुत्तमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु ठवणं / वज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये / / –बृहद्नयचक्र 269 54. वस्तु नामादिषु क्षिपतीति निक्षेपः / –नयचक्र 45 55. संशयविपर्यये अनध्यवसाये वा स्थितस्तेभ्योऽपसायं निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः / -धवला 4 | 1, 3, 1 / 2 / 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org