________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [329 जीवद्रव्यप्ररूपणा 404. जोववव्वा गं भंते ! कि संखेज्जा असंखज्जा अमला? गो० ! नो संखज्जा, नो असंखेन्जा, अणंता। से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चह जीवदध्वा णं नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता? गोयमा! असंखेज्जा रइया, असंखेज्जा असुरकमारा जाव असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढयोकाइया जाव असंखेज्जा वाउकाइया, अणंता वणस्सइकाइया, असंज्जा बेंदिया आव असंखेज्जा चरिदिया, असंखेज्जा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जा मणसा, असंखेज्जा वाणमंतरिया, असंखेज्जा जोइसिया, असंखेज्जा वेमाणिया, अणंता सिद्धा, से एएणं अट्ठणं गोतमा ! एवं बुच्चइ जीवदन्या शं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता / 404 प्र.] भगवन ! क्या जीवद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? [404 उ.] गौतम ! जीवद्रव्य संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जीवद्रव्य संख्याल नहीं, असंख्यात नहीं किन्तु अनन्त हैं ? [उ.] गौतम ! अनन्त कहने का कारण यह है-असंख्यात नारक हैं, असंख्यात असुरकुमार यावत् असंख्यात स्तनितकुमार देव हैं, असंख्यात पृथ्वीकायिक जीव हैं यावत् असंख्यात वायुकायिक जीव हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक जीव हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय हैं यावत् असंख्यात चतुरिन्द्रिय, असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव हैं, असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यंतर देव हैं, असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं और अनन्त सिद्ध जीव हैं / इसीलिये गौतम! ऐसा कहा जाता है कि जीवद्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं किन्तु अनन्त हैं। विवेचन यहाँ जीवद्रव्य की अनन्तता का वर्णन किया गया है। जो जीता था, जीता है और जीयेगा, इस प्रकार के कालिक जीवनगुणयुक्त द्रव्य को जीव कहते हैं / अर्थात् जो ज्ञान, दर्शन आदि भावप्राणों से अथवा भावप्राणों के साथ इन्द्रियादि रूप द्रव्यप्राणों से जीता था, जीता है और जियेगा वह जीव है / जीव दो प्रकार के हैं...मुक्त और संसारी। मुक्त जीव ज्ञान, दर्शन प्रादि भावप्राणों से ही युक्त हैं किन्तु संसारी जीव द्रव्यप्राणों की अल्पाधिकता एवं गति, शरीर आदि को विभिन्नता के कारण अनेक प्रकार के हैं। फिर भी सामान्यतः संसारी जीवों के मुख्य दो प्रकार हैं-बस और स्थावर / सनामकर्मोदय से प्राप्त इन्द्रियादि प्राणों से युक्त जीव त्रस और स्थावरनामकर्म के उदय से प्राप्त इन्द्रियादि प्राणों से युक्त जीव स्थावर कहलाते हैं / संसारी जीवों की संख्या अनन्त है, क्योंकि अकेले वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं और अकेले मुक्त जीव भी अनन्त हैं / इसीलिये सामान्यतः जीवद्रव्यों की संख्या अनन्त बताई है। संसारी जीवों की जो जो संख्या सामान्य रूप से कही गई, बे सभी शरीरधारी हैं अत: अब उनके शरीरों का वर्णन करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org