________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] 397. तत्थ णं चोयए पण्णवर्ग एवं वदासीअस्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहि अणप्फुण्णा? हंता अत्थि, जहा को दिळंतो? से जहाणामते कोटुए सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थ णं माउलुगा पविखत्ता ते वि माया, तत्थ गं बिल्ला पक्खित्ता ते वि माता, तत्थ णं आमलया पविखत्ता ते वि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा पविखत्ता ते वि माया, लस्थ णं मुग्गा पविखता ते वि माया, तस्थ णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माता, तत्थ णं गंगावाल्या पक्खित्ता सा वि माता, एवामेव एएणं दिट्ठतेणं अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहि अणप्फुण्णा। एएसि पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं // 114 // [397] इस प्रकार प्ररूपणा करने पर जिज्ञासु शिष्य ने पूछाभगवन् ! क्या उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश हैं जो उन वालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट हों ? आयुष्मन् ! हाँ, (ऐसे आकाशप्रदेश भी रह जाते) हैं। इस विषय में कोई दृष्टान्त है ? हाँ है / जैसे कोई एक कोष्ठ (कोठा) कष्मांड के फलों से भराहना हो और उसमें बिजौराफल डाले गए तो वे भी उसमें समा गए / फिर उसमें विल्बफल डाले तो वे भी समा जाते हैं। इसी प्रकार उसमें आंवला डाले जाएँ तो वे भी समा जाते हैं। फिर वहाँ बेर डाले जाएँ तो वे भी समा जाते हैं। फिर चने डालें तो वे भी उसमें समा जाते हैं। फिर मंग के दाने डाले जाएँ तो वे भी उसमें समा जाते हैं। फिर सरसों डाले जायें तो वे भी समा जाते हैं। इसके बाद गंगा महानदी की बाल डाली जाए तो वह भी उसमें समा जाती है। इस दृष्टान्त से उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश होते हैं जो उन वालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट रह जाते हैं / इन पल्यों को दस कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। 114 विवेचन--सूत्र में सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का स्वरूप बतलाया है। व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम में तो पत्यान्तर्वर्ती बालानों से स्पृष्ट आकाशप्रदेशों का अपहरण किया जाता है और उन बालागों के अपहरण में ही सस्यात उत्सर्पिणी-प्रवपिणियां समाप्त हो जाती हैं। किन्तु सूक्ष्म क्षेत्रपत्योपम में पल्य स्थित बालानों के असंख्यात खण्ड किये जाते हैं, जिनसे आकाशप्रदेश अस्पृष्ट भी होते हैं और स्पृष्ट भी / कूष्माण्ड फल आदि से युक्त कोठे के दृष्टान्त द्वारा इसे स्पष्ट किया गया है। इसमें स्पृष्ट और अस्पृष्ट दोनों प्रकार के आकाशप्रदेशों का अपहरण किये जाने से इसका काल व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम से असंख्यात गुणा अधिक होता है। बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट और स्पृष्ट दोनों प्रकार के आकाशप्रदेशों को ग्रहण करने का कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org