________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [319 [391-3 प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [391-3 उ.] गौतम ! ईशानकल्प के देवों की जघन्य स्थिति साधिक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति साधिक दो सागरोपम की है। [प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प की (परिगृहीता) देवियों की स्थिति कितने काल की कही है ? [उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति साधिक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति नौ पल्योपम की होती है। [प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य कुछ अधिक पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। [4] सणंकमारे णं भंते ! कप्पे देवाणं केवइकालं ठिती पन्नता? गो० ! जह० दो सागरोवमाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई। [391-4 प्र.] भगवन् ! सनत्कुमारकल्प के देवों की स्थिति कितनी होती है ? [391-4 उ.] गौतम ! जघन्य दो सागरोपम की और उत्कृष्टतः सात सागरोपम की है। [5] माहिदे णं भंते ! कप्पे देवाणं जाव गोतमा ! जह० साइरेगाई दो सागरोवमाई, उको साइरेगाई सत्त सागरोवमाइं। [391-5 प्र.] भगवन् ! माहेन्द्रकल्प में देवों की स्थिति का प्रमाण कितना है ? [391-5 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति साधिक दो सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम प्रमाण है। [6] बंभलोए णं भंते ! कप्पे देवाणं जाव गोतमा ! जहं० सत्त सागरोवमाई उक्कोसेणं दस सागरोवमाई। [391-6 प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प के देवों की स्थिति कितनी है? [391-6 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति सात सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है। [7] एवं कप्पे कप्पे केवतिकालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! एवं भाणियवंलंतए जह० दस सागरोवमाई उक्को० चोइस सागरोवमाई। महासुक्के जह० चोद्दस सागरोवमाइ उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई। सहस्सारे जह० सत्तरस सागरोवमाई उक्कोसेणं अद्वारस सागरोवमाई। आणए जह• अट्ठारस सागरोवमाइं उबको एक्कणवीसं सागरोवमाई। पाणए जह• एक्कूणवीसं सागरोवमाई उक्को० बीसं सागरोवमाई। आरणे जह० वीसं सागरोवमाई उक्को० एक्कवीसं सागरोवमाई। अच्चुए जह० एक्कवीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org